Book Title: Narbhavdrushtantopnaymala
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 7 राधावेध दृष्टांतः : : 137 पृथ्वीने निर्वीर जीइ तमाम लोको विषाद (खेद) पाम्या / / 76 // अह सो संजमपुत्तो भूमिवइणो पहाणदोहिच्चो / आगम्म थंभपासे तत्थ य सव्वं पलोइत्ता / / 77 / / भावार्थ:-त्यारबाद राजानो पुत्र अने मंत्रिनो दौहित्र एटले प्रधाननी पुत्रीनो पुत्र संयमनामना कुमार स्तंभ पासे आव्यो ने त्यां जइ तेमां सघलं निहाली // 77 // रोडिज्जतो चेडेहि हसिज्जमाणो देवीसपरिसेहिं / होलिज्जतोवि राग-दोसचेडेहिं छलमत्तं // 78 / / भावार्थ:-कषायरूप दासीपुत्रोथी रोलावा छतां परीषहरूप बावीस भाइओथी हसावा छतां अने रागद्वेषरूप सुभटोथी कंपित थवा छतां / / 78 / / विगहापमायखग्ग-कृतग्गेहि समं भयत्तेहिं / सुहकिरियाउज्जुजीवा संजुज्जा णाणधणुदंडे / / 79 // खाइगसम्मत्तसरो मंडित्तोवसममंडलढाणे / सुठुनिययप्पवीरिय-गुणेहि निस्संसयाउत्तो / / 80 / / ____ भावार्थ:-विकथा अने प्रमादरूप तरवार ने भालानी अणीवडे घोंचावा छतां पण शुभक्रियारूप सीधी दोरीने ज्ञानरूप धनुष्य उपर चडावी उपशम
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