Book Title: Narbhavdrushtantopnaymala
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 150 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला पणदसलक्खेगासी-सहस्सगुणिआल अहियसयमेग।. .. एसो बज्झो परिही पण्णत्तो सम्वदंसीहि // 4 // भावार्थ:-पंदरलाख एक्याशीहजार एकसोओगणचालीश (1581139) योजन प्रमाणनी लवणसमुद्रनी बाह्यपरिधी सर्वदशिओए (तीर्थंकरोए) कहेल छे // 4 // तत्थत्थिगवरि तित्थं जोयणदससहस्सपमाणयं मझे / पणनउइजोयणसहस्सा-तिक्कमे उभयपासंमि. // 5 // भावार्थ:-तेमा बन्ने तरफ पंचाणुं हजार योजन जइए एटले दशहजार योजन- एक तीर्थ आवे छे / 5 / तम्मन्झ देसभाए पायालनिवा य वज्जरयणमया / वडवामुह 1 केऊरा२ जूव३ ईसर४ णामया चउरो // 6 // भावार्थः तेना मध्यभागमा वज्ररत्नमय वडवामुख 1, केयूर 2, यूप 3 अने ईश्वर 4 नामना चार पाताल कलशा छे // 6 // जोयणलवरखपमाणा मज्झे जोयणसहस्सदस य मुहे / मूले तम्मि पमाणा तह जोयणसहस्सबाहल्ला / / 7 / / ___भावार्थ:-जेओ वच्चे लाख योजनना अने मोढे तथा तलीये दश, दश हजार योजनना प्रमाणवाला छे तेमज एक हजार योजनना जाडा छे // 7 //
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