Book Title: Narbhavdrushtantopnaymala
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 145
________________ 138 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला रूप मंडलाकारस्थान बांधी क्षायिकसम्यक्त्वरूप बाणने सारा आत्मवीर्य ( पराक्रम ) वडे खेंची मुक्यं // 79-80 // मुक्को य तत्थ बाणो राहावेहा कओ तहा तेण / हट्ठाखिलभव्वणिवा जयजयसद्दो समुच्छलिभो // 81 // भावार्थ:-अने तेणे मोहनीयकर्मनी स्थितिरूप राधानो वेध कर्यो, आई आश्चर्य देखी भव्यरूप राजाओ खुश थया अने 'जयजय' शब्द चोमेर प्रसर्यो / / 81 // खित्ता केवललच्छी वरमाला निन्दुइए तस्स गले / भग्गा दिसोदिसं ते सब्वेवि परोसहाइया / / 8 / / .. भावार्थः-तेवार पछी मोहनी स्थितिनो वेध (विनाश) थवाथी निर्वृतिरूप कन्याए केवललक्ष्मी रूप वरमाला तेना गलामां नांखी अने तुरत ज परीषहो जुदीजुदी दिशामां भागी गया / / 82 // संतुट्ठो कम्मनिवो दसणसइवस्स जयवरो दिण्णो / धिक्कारं कारिऊणं कड्ढिया रागदोसभडा / / 83 // भावार्थ:-इंद्रदत्तराजारूप कर्मनृपतीए खुश थइ दर्शनमंत्रिने धन्यवाद तेमज वरदान आप्या * अने रागद्वेषरूप सुभटोने तिरस्कार करी.काढी मूक्या // 83 //

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