Book Title: Narbhavdrushtantopnaymala
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 7 राधावेध दृष्टांत: : : 139 जाओ सलाहणिज्जो सम्वत्थपसंसमाणगुणनिवहो / सिरिजिणवरसुसरेण य विहिओ नियरज्मधोरिज्जो / / 84 / / भावार्थ:-ते संयमपुत्र श्लाघा पाम्यो एटले कांइ पण सलाह लेवाने लायक थयो अने चारे तरफ तेना गुणोनी प्रशंसा थवा लागी अने छेवटे श्री जिनेश्वररूप श्वसुरे (सासरे) पोतानी गादीनो मालीक बनाव्यो / / 84 // जह तेहिं न हु पत्तं राहावेहस्स लाहमणेहि / तह मणुयत्तं पुणरवि न लहिज्जइ होणपुरोहिं / / 5 / / भावार्थ:-जेम. बीजा श्रीमाली प्रमुख बावीश अथवा अग्निदत्त प्रमुख दासीपुत्रोथी राधावेध न करी शकायो तेम पुण्यविनाना प्राणीओने पण मनुष्यजन्म पामवो ते घणो ज दुर्लभ छ / 85 / / इय सत्तमदिट्ट तो चक्कयणामा मए विणि दिट्टो / नरभवलद्धट्ठाए लिहिओ पवयणसमुद्दाओ // 86 // भावार्थ:-आ प्रमाणे मनुष्यभवनी दुर्लभता उपर चक्रनामनो एटले राधावेधनामनो सातमो दृष्टांत शास्त्रसमुद्रमांधी उद्धरी अहिं में लखीने योजेल [रचेल] छे / / 86 // सिरिविजयप्पहसूरि-रज्जे सिरिविणयविमलकविराया। सिरियोरविमलयंडिय-सीसेण णयाइविमलेण / / 87 / /
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