Book Title: Narbhavdrushtantopnaymala
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 7 राधावेध दृष्टांतः : : 133 महोत्सवनी क्रिया संपूर्ण थइ अने राजाए पोते करेला पण (शरत) प्रमाणे ते सुरेंद्रदत्तने राज्य आप्यु, जेम सुरेंद्रदत्ते राधावेधनाचक्रनुं छिद्र जोइ बराबर बाण मारी राधावेध कर्यो, परंतु बीजा कुमारोवडे राधावेध नहि थइ शकवाथी हताशज (नाराज) थया एटले तेओने काइपण कला न आवडवाथी महामूर्ख होवाथी राधावेध साध्या विना राजकन्याने तथा राज्यादिकने कांइपण प्राप्त करी शक्या नहि / 64 / कहमवि देवबलेण य अब्भासवसेण साहिउ सक्को / राहावेहोवि पुणा न लहिज्जा नरभवं एवं // 65 // भावार्थ:-जो के देवताना बलवडे करीने अने अभ्यासबलवडे करीने कालांतरे पण राधावेध साधी शके, केमके राधावेध साधवो ते काइ शक्तिनी बहार नथी परंतु फरी मनुष्यजन्मनुं मलq तो विशेष दुर्लभ छे / / 65 / / तह कोइ पुण्णपन्भार-भारिओ माणुसत्तमं लहइ / एवं अणोरपारं भवकतारं परियडतो // 66 / / भावार्थ:-आ घणी अपार एहवी संसाररूप अटवीमा भमतो. जीव पुण्यराशीने लीधेज कदाचित् अने कथञ्चित् मनुष्यजन्म मेलवी शके छे // 66 / /
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