Book Title: Muni Sabhachand Evam Unka Padmapuran Author(s): Kasturchand Kasliwal Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur View full book textPage 5
________________ की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है जो वस्तुतः स्वागत योग्य है लेकिन संख्या में वृद्धि के कारण उन्हें २० भागों में समेटना कठिन प्रतीत होने लगा है । पद्मपुराण कमानक एवं भाषा की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है । हिन्दी में मुनि सभाचन्द्र द्वारा विरचित प्रस्तुत पद्मपुराण पुराणसंज्ञक प्रथम कृति है इसलिये इस पुराण कृति का महत्त्व और भी बढ़ गया है। पद्मपुरा - पउमचरिय-पउमचरिउ - पद्मचरित पद्मपुराणसंज्ञक कितनी ही कृतियां विभिन्न विद्वानों ने लिखी है। वैष्णव श्रमं के १८ पुराणों में पद्मपुराण भी एक पुराण है। प्राचार्य रविषेण प्रथम जैनाचार्य है जिन्होंने वीं शताब्दि में ही पपुराण जैसा ग्रंथ निवस करने का गौरव प्राप्त किया जिसका अनुसरण मागे होने वाले कितने ही कवियों ने किया और विभिन्न नामों से पद्मपुरा के कथानक को छन्दोबद्ध किया । प्रस्तुत पद्मपुराण पर राजस्थानी भाषा का सबसे अधिक पुट है । सामाजिक रीति-रिवाजों के विशेष अवसरों पर मिष्ठान्न एवं खाद्य सामग्री के नामों का उल्लेख, जोधपुर एवं उदयपुर जैसे नगरों के उल्लेख इस बात का द्योतक है कि कवि का राजस्थान वासियों से अधिक सम्पर्क था । यह भी सम्भव है कि वह स्वयं भी इन नगरों में जाकर शोभा बढ़ायी हो । पद्मपुराण एक कोश ग्रंथ के समान है जिसमें विभिन्न मन्दावलियों के प्रतिरिक्त वनस्पतियों, विभिन्न प्रकार के फूलों, ग्राम एवं नगरों के नामों का जो उल्लेख हुआ है वह अपने आप में अद्वितीय है । पुराण में विभिन्न पात्रों के इतने अधिक नाम हो गये हैं कि उनको याद रखना भी कठिन प्रतीत होता है लेकिन सभी पात्र इतने आवश्यक भी हैं कि उनके बिना कथानक यधूरा ही प्रतीत होने लगता है । पुराण में ऋषभदेव एवं महावीर के जीवन पर अच्छा इतिबुल दिया गया है। २०वें तीर्थंकर सुनिसुव्रतनाथ का जीवनवृत्त तो पद्मपुराण कथानक का एक भाग ही है क्योंकि पुराण के नायक राम, लक्ष्मण, सीता हनुमान, राजा जनक, सुग्रीव एवं प्रति नायक रावण, कुम्भकरण, खरदूषण तथा अंजना, पवनंजय, लव कुश सभी उन्हीं के शासन काल में हुये थे । सगर चक्रवर्ती एवं भरत बाहुबली का व्यक्तित्व भी पद्मपुराण में अंकित है। जिसके प्रभाव में पद्मपुराण का इतिवृत्त पूरा भी नहीं हो पाता । पद्मपुराण में विद्यानों के सहारे अधिक लड़ाई होती है प्रोर बिना विद्याओं की सहायता के निर्णायक युद्ध नहीं लड़ा जा सकता है। रावण को अपनी विद्यार्थीों पर बड़ा गर्व था किन्तु सही गर्न उसे ले बैठता है क्योंकि यह भी सही है कि पुण्यशाली व्यक्तियों पर विद्याओं का कोई प्रसर नहीं होता है । संबुक की १२ बर्ष की साधना के पश्चात् भी सूरजहास प्राप्त नहीं हो सका जबकि लक्ष्मण को वह स्वतः ही प्राप्त हो गया। रावण के साथ युद्ध के उत्कर्ष काल में राम लक्ष्मण कोPage Navigation
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