Book Title: Mrutyu Mahotsav Author(s): Dhyansagar Muni Publisher: Prakash C Shah View full book textPage 7
________________ विद्यासागरजी महाराज के संघ की यह परंपरा रही है कि उसकी बोली नहीं लगती और यह भी, कि संयम का यह उपकरण उसको ही प्राप्त हो और नया उपकरण भी उसी के द्वारा महाराजश्री स्वीकार करें जो किसी न किसी संयम को व्रत के रूप में ग्रहण करने का संकल्प लेकर जीवन पथ में आगे बढ़ने को तत्पर हो । तदनुसार हमें पूज्य गुरुवर को नई पिच्छी व प्रदान करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। धन्य था वह दिन और धन्य थी वह घड़ी जब गुरुदेव ने हमारा नाम प्रथम पंक्ति में रखकर हमें कृतार्थ कर दिया। पुनश्च, गुरुदेव की पुरानी पिच्छी को प्राप्त करने का सौभाग्य नागपुर निवासी मात्र उन्नीस वर्षीया रानू दीदी को मिला जिन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण करने का कठोर संकल्प किया। पूज्य गुरुवर के हम पर बहुत उपकार हैं। शिष्य जब तक गुरु से उऋण नहीं होता, तब तक उसकी मुक्ति संभव नहीं है। यों तो दिगम्बर आम्नाय में गुरुदेव किसी भी प्रकार की गुरुदक्षिणा स्वीकार नहीं करते, तथापि हमारे विशेष आग्रह पर उनसे हमने 'मृत्यु महोत्सव' नामक ग्रंथ की पांडुलिपि को पुस्तक रूप में प्रकाशित करने के लिये आशीर्वाद लिया। ॐ ग्रन्थरूप में गुरुदेव के उदात्त विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का स्वर्णिम अवसर पाकर हम तो पूज्य गुरुवर के और भी ऋणी हो गये। वस्तुतः अपरिग्रह व्रती गुरुदेव को प्रदत्त यह गुरुदक्षिणा ग्रन्थ रूप में o जन-जन के पास उनका मूर्तिमंत आशीर्वाद या प्रसाद बन कर पहुंचे, यह हमारी भी अंतःकरण की भावना है। निश्चय ही गुरुदेव के ग्रंथस्थ विचारों + को आत्मसात् करने से समाज में असाधारण जागृति आएगी और है जनसाधारण भी निर्भीक होकर साहस और उल्लास के साथ मृत्यु जैसे चिरंतन सत्य को अंतःकरणपूर्वक स्वीकार कर सकेगा और तब मृत्युकाल शोक और ग्लानि का अवसर नहीं, अपितु मृत्यु महोत्सव बन जाएगा और यदि ऐसा हुआ तो प्रत्येक व्यक्ति का यह जन्म ही नहीं, अगला जन्म भी सुधर जाएगा, संवर जाएगा। ___ अन्त में “त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये' के अनुसार गुरुदेव के ही मधुर स्वरों में सुने हुए एक भजन की कुछ पंक्तियाँ यहाँ उद्धृत करके मैं विराम लेना चाहूँगी। अस्तु चरण-धूलि अपने गुरुवर की, शिष्य-शीश पर चंदन हैं। गुरुवर के चरणों का वंदन, संयम का ही वंदन हैं। शिष्य और गुरुवर दोनों में, अमिट प्रेम का बंधन हैं। गुरुवर की हर साँस शिष्य के, भक्त हृदय का स्पंदन हैं। -वर्षा प्रकाश शाह, हिम्मतनगर (गुजरात) HottotoPage Navigation
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