Book Title: Mrutyu Mahotsav
Author(s): Dhyansagar Muni
Publisher: Prakash C Shah

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Page 52
________________ कम मृत्यु महोत्सव सात शतक मुनिवर दुख पायो, हथनापुर में जानो । बलि ब्राह्मणकृत घोर उपद्रव, सो मुनिवर नहिं मानो ॥ यह० लोहमयी आभूषण गढ़ के, ताते कर पहराये । पाँचों पाण्डव मुनि के तन में, तौ भी नाहिं चिगाये ॥ यह० और अनेक भये इस जग में, समता रस के स्वादी । वे ही हमको हों सुखदाता, हर हैं टेव प्रमादी ॥ सम्यग्दर्शन - ज्ञान- चरन-तप, ये आराधन चारों । ये ही मोंको सुख की दाता, इन्हें सदा उर धारों ॥ ४९ ॥ यों समाधि उर माँहीं लावो, अपनो हित जो चाहो । तज ममता अरु आठों मद को, जोति स्वरूपी ध्यावो ॥ जो कोई नित करत पयानो, ग्रामान्तर के काजै । सो भी शकुन विचारै नीके, शुभ शुभ कारण साजै ॥५०॥ मात-पितादिक सर्व कुटुम मिल, नीके शकुन बनावै । हलदी धनिया पुंगी अक्षत, दूध दही फल लावै ॥ एक ग्राम जाने के कारण, करैं शुभाशुभ सारे । जब परगति को करत पयानो, तब नहिं सोचो प्यारे ॥५१॥ सर्वकुटुम जब रोवन लागै, तोहि रुलावैं सारे । ये अपशकुन करैं सुन तोकौं, तू यों क्यों न विचारे ॥ अब परगति को चालत बिरियाँ, धर्म ध्यान उर आनो । चारों आराधन आराधो मोह तनो दुख हानो ॥५२॥ ह्वै निःशल्य तजो सब दुविधा, आत्मराम सुध्यावो । जब परगति को करहु पयानो, परमतत्त्व उर लावो ॥ मोह जाल को काट पियारे, अपनो रूप विचारो । मृत्यु मित्र उपकारी तेरो, यों उर निश्चय धारो ॥५३॥ दोहा मृत्यु महोत्सव पाठ को, पढ़ो सुनो बुधिवान । सरधा धर नित सुख लहो, सूरचन्द्र शिवथान ॥५४॥ पंच उभय नव एक नभ, संवत् सो सुखदाय । आश्विन श्यामा सप्तमी, कह्यो पाठ मेन लाय ॥५५॥ २५

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