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e मृत्यु महोत्सव
मृत्यु- महोत्सवः
मृत्यु - मार्गे प्रवृत्तस्य वीतरागो ददातु मे । समाधि-बोधि-पाथेयं, यावन्मुक्ति-पुरी पुरः ॥१॥
अन्वयार्थ - ( यावत्) जब तक (मुक्ति-पुरी) मुक्तिरूपी नगरी (पुरः) सम्मुख न आ जाए, ( वीतरागः ) वीतराग भगवान् ( मृत्युमार्गे) मृत्यु-मार्ग पर ( प्रवृत्तस्य मे) अग्रसर मुझे (समाधि - बोधि-पाथेयं) समाधि और बोधिरूपी पाथेय ( ददातु ) प्रदान करें ।
जीर्ण हुई मम जीवन-रेखा, आज अतः मेरे स्वामी ! हुआ मृत्यु की ओर अग्रसर बनकरके शिवपथगामी । जब तक मोक्ष-नगर ना आए, मुझे मार्ग का व्यय देना, देना बोधि- समाधि साधना, काया में कितना रहना ? ॥
अन्तर्ध्वनि : अरहंतदेव मुझ सल्लेखनाधारी साधक / क्षपक को, जो मरण के सन्मुख हूँ, बोधि अर्थात् रत्नत्रय का लाभ एवं समाधि अर्थात् समता/शुद्धोपयोग प्रदान करें, जो मेरे लिए मोक्ष जाने तक संबल बने ।
Essence: May the passionless Lord Jinendra grant me now advancing towards the last moments of this life, provisions like Bodhi i.e. the acquirement of 3 divine jewels viz. Correct faith, wisdom and conduct, and also Samādhi i.e. deep trance for my journey to Liberation, that can energise me on the way till the goal is achieved.
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