Book Title: Mrutyu Mahotsav
Author(s): Dhyansagar Muni
Publisher: Prakash C Shah

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Page 32
________________ कालय कलंक हा मृत्यु महोत्सव कलम का कल कम्यू आग दुःख-सन्तप्तः, प्रक्षिप्तो देह-पारे । नात्मा विमुच्यतेऽन्येन, मृत्यु-भूमिपतिं विना ॥५॥ अन्वयार्थ-(आगर्भात्) गर्भावस्था के प्रारम्भ से (देहपञ्जरे) देहरूपी पिंजरे में (प्रक्षिप्तः) डाली गयी (दुःखसन्तप्तः । आत्मा) दुःखों से सन्तप्त आत्मा (मृत्युभूमिपतिं विना) मृत्यु। रूपी राजा के बिना (अन्येन) अन्य द्वारा (न) नहीं (विमुच्यते) । विमुक्त की जाती। तन-पिंजरे में पड़ी हुई है, आत्मा गर्भ-अवस्था से, आकुल-व्याकुल है इस तन की, कर्माधीन-व्यवस्था से। ज्यों बन्दी को बन्दी-गृह से, राजा बन्धन मुक्त करे, मृत्युराज बिन तन-बन्धन से, कौन मुझे निर्मुक्त करे?॥ अन्तर्ध्वनि : तन-पिंजरे में कर्मों द्वारा बन्धन-बद्ध आत्मा ने 2 गर्भावस्था से अनेक कष्ट उठाए हैं। मृत्युरूपी राजा के अतिरिक्त ऐसा कौन है जो मुझे इस कारावास से मुक्त कर सके ? Essence : In the mother's womb itself your soul has been put behind the bars in this bodyD_cage, who else, but King Death can grant you | freedom from this imprisonment ?

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