Book Title: Mrutyu Mahotsav
Author(s): Dhyansagar Muni
Publisher: Prakash C Shah

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ कलमकार कलमलकालणाकण मृत्यु महोत्सव करुणाकालम्पाकाखाकरणका सुदत्तं प्राप्यते यस्माद्, दृश्यते पूर्व-सत्तमैः । भुज्यते स्वर्भवं सौख्यं, मुत्यु-भीतिः कुतः सताम् ॥४॥ ___अन्वयार्थ (सतां) सत्पुरुषों के पास (मृत्युभीतिः) मृत्यु । 7 का भय (कुतः) कैसे (दृश्यते) देखा जा सकता है, (यस्मात्) । जिस मृत्यु के कारण (पूर्वसत्तमैः) पूर्ववर्ती सत्पुरुषों के द्वारा (सुदत्तं) सुपात्रों को प्रदत्त दान (प्राप्यते) प्राप्त और (स्वर्भवं) । स्वर्ग में होनेवाला (सौख्यं) सुख (भुज्यते) उपभुक्त हुआ है ? सत्पुरुषों ने सत्पात्रों को, जो-जो उत्तम-दान दिया, स्वर्ग-सुखों के संग उसे फिर, मृत्यु-कृपा से प्राप्त किया। तब सजन क्यों डरे मृत्यु से, जो चेतन को हितकारी? इष्ट-प्रदाता को इस जग में, कौन कहेगा अपकारी?॥ अन्तर्ध्वनि : पूर्ववर्ती भव्य-जीवों ने मृत्यु की कृपा से ही सुपात्रों को प्रदत्त दान का फल एवं स्वर्गीय सुख प्राप्त किये थे। । ऐसे पुण्य फल को प्रदान करनेवाली मृत्यु से सदाचारी मनुष्य ।। । क्यों घबरायेगा? अर्थात् सत्पुरुष में मृत्यु-भय दृष्टिगोचर नहीं । 8 हो सकता। Essence : How can the fear of death possess gentlemen, who, since olden times, by death's i grace, have acquired the fruits of their auspicious deeds like charity for benevolence and for religious d guides and also enjoyed the divine pleasures of Paradise?

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68