Book Title: Mrutyu Mahotsav
Author(s): Dhyansagar Muni
Publisher: Prakash C Shah

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Page 44
________________ मृत्यु महोत्सव अतिपरिचितेष्ववज्ञा, नवे भवेत्प्रीतिरिति हि जन-वादः । चिरतर- शरीर-नाशे, नवतर-लाभे च किं भीरुः ॥१७॥ अन्वयार्थ-(हि) चूँकि ( इति जनवादः) ऐसी लोकोक्ति है कि ( अतिपरिचितेषु) अति-परिचितों में (अवज्ञा ) अवमानना का भाव और (नवे) नवीन कें प्रति (प्रीतिः) प्रीति ( भवेत् ) होती है, ( चिरतरशरीरनाशे) अत्यन्त पुराने शरीर का नाश (च) और ( नवतरलाभे ) अतिशय नवीन का लाभ होने पर (भीरुः) भीरु (किं) क्या होना ? जहाँ-कहीं अति-परिचय होता, वहाँ अवज्ञा हो जाती, कहे दूर के ढोल सुहाने, प्रीति नये पर ही आती । करो भव्य ! चरितार्थ कहावत, जीर्ण- देह को जाने दो, होकर अभय अहो ! चेतन को, अब नूतन-तन पाने दो ॥ अन्तर्ध्वनि : ‘अतिपरिचय से अवमानना होती है और नवीन वस्तु से प्रीति' यह लोकप्रसिद्ध कहावत है । तेरा पुराना शरीर छूट रहा है और तुझे नया शरीर मिल रहा है, तब डरता क्यों है ? Essence: 'Over-recognition provides neglect and newness produces attraction;' this is a folk-lore. When the old body is perishing and a new one is in store, why to fear death ? १७

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