Book Title: Mrutyu Mahotsav
Author(s): Dhyansagar Muni
Publisher: Prakash C Shah

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Page 34
________________ छलकाका कालका मृत्यु महोत्सव कलकल कलाकार का मृत्यु-कल्प-द्रुमे प्राप्ते, येनात्मार्थो न साधितः । निमग्नो जन्म-जम्बाले, स पश्चात् किं करिष्यति ॥७॥ ___ अन्वयार्थ (येन) जिसके द्वारा (मृत्यु-कल्पद्रुमे प्राप्ते) । मृत्युरूपी कल्पवृक्ष प्राप्त होने पर (आत्मार्थः) आत्म हित (न साधितः) नहीं साधा गया, (जन्मजम्बाले) संसाररूपी कीचड़ 2 में (निमग्नः सः) निमग्न वह (पश्चात्) आगामी काल में (किं करिष्यति) क्या कर लेगा? जिसको अवसर प्राप्त न होता, उसे न कोई चारा है, पर जो अवसर पाकर खोता, वह दुर्मति का मारा है। मृत्यु-कल्पतरु को पाकर भी, जो हित-साधन ना करता, वह बिगाड़ता-निज-भविष्य को, जन्म-पंक से ना तरता ॥ अन्तर्ध्वनि : वास्तव में समाधिमरण कल्पतरु है। अवसर । प्राप्त करके भी जो कुमरण करते हैं, आत्मा का हित नहीं साधते, वे मनुष्य भव को खोकर संसार के कीचड़ में जा पड़ते हैं। स्वर्णिम अवसर को गँवानेवाले अभागे मानव अपना भव बिगाड़कर भविष्य में क्या आत्म-कल्याण करेंगे? Essence : A fool, who doesn't accomplish his i soul's goal even on finding this wish-fulfilling tree, Death, would then accomplish what, after sinking in is the quicksand of this misery filled world ? . d

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