Book Title: Mrutyu Mahotsav
Author(s): Dhyansagar Muni
Publisher: Prakash C Shah
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सहज हो जाता है। कषाय-सल्लेखना चित्तगत मोह, राग एवं द्वेष + का निराकरण करके मन को शान्त एवं प्रसन्न बनाती है। इस
प्रकार तन-मन की निर्मलता प्राप्त होने पर विदाई की बेला मंगलमय बन जाती है, मातमरूप नहीं। यही कारण है कि एक मृत्यु-महोत्सव, अनेक जन्मोत्सवों से बढ़कर है। आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने इसकी व्यवस्थित प्रक्रिया रत्नकरण्डक श्रावकाचार में सुंदर ढंग से प्रदान की है :___"सर्वप्रथम स्नेह-वैर का बन्धन तोड़कर 'यह पुत्र स्त्री आदि मेरे हैं, और मैं इनका हूँ', इत्यादि सर्व संबंध छोड़कर, बाहरभीतर के परिग्रह का परित्याग कर शुद्धमना होते हुए मधुर वचनों 0 द्वारा स्वजन-परिजनों से अपने आपको क्षमा कराएँ। उनसे क्षमायाचना करने से पहले स्वयं सभी को क्षमा करें। पश्चात् गुरु
चरणों का आश्रय लेकर उन्हें अपने सभी प्रकार के दोष निश्छल © होकर बता दे और प्रायश्चित्त स्वीकार करके उन्हीं निर्यापकाचार्य
(सल्लेखना-गुरु) से अपने ऊपर पञ्च-महाव्रतों का आरोपण करा ले छ अर्थात् महाव्रतों के संस्कारारोपण गुरु से कराएँ। यह व्रतारोपण
मृत्यु-पर्यन्त हो। अब शोक, भय, अवसाद (खेदखिन्नता), प्रेम, कलुषता और अप्रीति के भाव समाप्त करके अपने बल एवं उत्साह को प्रकट करके अमृतमयी शास्त्र-वचनों द्वारा मन को निर्मल बनाएँ। कातरता छोड़ दे। तदुपरान्त क्रमशः ठोस आहार को घटाकर स्निग्ध पेय को बढ़ाएँ। पश्चात् स्निग्ध-पेय भी त्याग कर खरपान द्वारा उदरपूर्ति करें अर्थात् कांजिकाहारादि से काम लें। - अन्ततः शुद्ध-जल पर आ जाए। अपनी शक्ति देख कर उसका भी टू त्याग करके उपवास अंगीकार करें और पञ्चनमस्कार में मन लगाकर सावधानीपूर्वक अपनी आयु पूर्ण करें, देह विसर्जित करें।" ...
र०क० श्रा० श्लोक १२४-१२८ ] वक्तव्य यहाँ पूर्ण नहीं होता, तथापि विज्ञ-जनों के लिये संकेत ही पर्याप्त मान यहाँ लेखनी को विराम दिया जाता है। .
॥ ॐ शांतिः ॥
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क्षुल्लक ध्यानसागर (
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