Book Title: Mrutyu Mahotsav
Author(s): Dhyansagar Muni
Publisher: Prakash C Shah
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आहार के त्याग को देख उसका उद्देश्य मृत्यु को आमन्त्रण न समझ यही समझना उचित है कि इससे प्रमाद एवं अनावश्यक
अस्वस्थता से मुक्ति मिलती है। रही उपवासों की बात, तो यह * एक वैज्ञानिक तथ्य है कि उपवास से भी शुद्धीकरण होता है, or: अतः उपवासों का लक्ष्य भी मृत्यु को आमन्त्रण देना नहीं अपितु
काया का निर्विषीकरण (Detoxification) है। निर्विष काया में स्थित जीव के भाव विशेष निर्मल होते हैं। स्थूलतः सल्लेखना और आत्महत्या में निम्नांकित भेद हैं :सल्लेखना
आत्महत्या •जीवन-मरण की वांछा रहित • मृत्यु की प्रबल वांछा सहित होती है।
होती है। • अनुमतिपूर्वक प्रगटरूप से • अनुमति लिये बिना चोरी से होती है।
की जाती है। •समाधिमरण का कारण है। • अकालमरण का कारण है। .साहस है।
.कायरता है। आदर्श बनाती है। • अपयश प्रदान करती है। • 'जीवन नष्ट होता है, जीव •'न रहे बाँस, न बजे बाँसुरी'
नहीं', यह जानकर की जाती अर्थात् जब मैं ही मर जाऊँ, है, अतः जब तक जीवन है, तो कष्ट कैसे रहे ? यह मान जीव के हित का पुरुषार्थ कर की जाती है। किया जाता है। • आशा-निराशा छोड़कर की घोर निराशापूर्वक की जाती
जाती है। • विशुद्धिपूर्वक की जाती है। • संक्लेशपूर्वक की जाती है। © • भावावेश में असंभव है। • भावावेश बिना असंभव है।
• धीरज के साथ ही होती है। • अधीर होकर ही की जाती है। • तैयारीपूर्वक मरण है। • मरण की तैयारी है। • अल्पकाल में होना दुष्कर है। • अल्पकाल में ही की जाती है,
उसके बाद नहीं। • मनको जीतकर की जाती है। • जीवन से हार कर की जाती
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