Book Title: Mrutyu Mahotsav
Author(s): Dhyansagar Muni
Publisher: Prakash C Shah

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Page 6
________________ आत्म निवेदन क्षुल्लक १०५ श्री ध्यानसागरजी महाराज संतशिरोमणि आचार्य १०८ श्री विद्यासागरजी महाराज के प्रथम पंक्ति के शिष्यों में प्रतिष्ठित हैं। उनका सांनिध्य हमारे जीवन की अमूल्य उपलब्धि हैं । सन् २००५ में जिस समय हिम्मतनगर (गुजरात) वासियों का भाग्योदय हुआ और उन्हें महाराजश्री के वर्षायोग का सुअवसर प्राप्त हुआ, तब पहली बार हमें महाराजश्री के परिचय एवं प्रत्यक्ष दर्शन का सुयोग मिला । हम धन्य हुए। वर्षायोग के दौरान श्री कार्तिकेयानुप्रेक्षा सर्वार्थसिद्धि, रयणसार, कल्याणमंदिर स्तोत्र, मृत्यु महोत्सव आदि के माध्यम से गुरुवर के श्रीमुख से सरस्वती की अजस्र धारा प्रवहमान होती रही और श्रोताजन उसमें आपाद-मस्तक अवगाहन करते हुए भावविभोर होते रहें। हमारा परिवार भी पूर्णतः लाभान्वित हुआ। उनकी जिह्वा पर जैसे साक्षात् माँ सरस्वती का वास है। उनके कंठ की तो अब किन शब्दों में प्रशंसा की जाए? ॐ अदभुत माधुर्य है उनके कंठ से निकले मधुमिश्रित स्वरों में! उनके मधुर कंठ से निःसृत भक्ति की धारा कैसेट्स और सीडियों के माध्यम से आज भी जन-जन के हृदय में गुंजित हैं। जीवन क्या है ? यद्यपि आज तक जीवन एक अपरिभाष्य शब्द रहा है, एक अनसुलझी पहेली रही है, वस्तुतः जीवन जन्म और मृत्यु के बीच की यात्रा है। अथवा यों कहिए कि जीवन एक सिक्का है जिसके दो पहलू हैं-जन्म और मृत्यु । "जातस्य हि ध्रुवो मृत्युः" अर्थात् __'आया है सो जायगा, राजा रंक फकीर। कोई सिंहासन चढ़ चले, कोई बंधा जंजीर ।' किन्तु हम संसार के अज्ञानी लोग इस चिरंतन सत्य को जानकर भी तु अनजान बने रहते हैं और किसी भी स्वजन के निधन पर रो-रो कर आर्त्त-रौद्र ध्यान के शिकार होते हैं। वस्तुतः मृत्यु तो हमारा एक ऐसा सच्चा मित्र है जो हमें समस्त दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्त करता है। मृत्यु हमें जीर्ण-शीर्ण शरीर से मुक्त कर नये शरीर को प्राप्त करने में सहायक होती हैं। अतएव मृत्यु को अनिष्ट न समझते हुए तथा जीवन-यात्रा की सुखद मंजिल मानकर हम बोधि-तत्त्व उपलब्ध कर सकते है तथा मृत्यु को भी एक महोत्सव के रूप में मना सकते हैं। मृत्यु महोत्सव का यह अविस्मरणीय उपदेश एवं दिव्य संदेश हमें गुरुवर क्षुल्लकश्री ध्यानसागरजी के प्रवचनों से प्राप्त हुआ। चतुर्मास की सम्पन्नता पर पिच्छी-परिवर्तन की परंपरा हैं। वस्तुतः पिच्छी एक ऐसा उपकरण हैं जो संयम का प्रतीक है। आचार्य प्रवर श्री

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