Book Title: Meri Mewad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

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Page 21
________________ मेरी मेवाड़यात्रा कॉलर के जमाने में भी, पैर की एड़ी तक की अंगरखी और उस के उपर दस हाथ के दुपट्टे से कमर बांधे बिना दरबार के महल में प्रवेश न पाने का रिवाज, आज भी मेवाड़ में सुरक्षित है । जिस जमाने में, अन्य प्रान्तों के छोटे छोटे ग्रामों में भी चाय की होटलों का बोलबाला है, उसी जमाने में मेवाड़ के प्रधान - नगर उदयपुर जैसे स्थान पर भी शायद ही कहीं चाय की होटल दिखाई दे । भारतवर्ष के प्रत्येक प्रान्त में, फिजूल खर्ची के प्रश्न पर विचार किया जा रहा है और ऐसा माना जा रहा है, कि इस फिजूल खर्ची से देशकी दरिद्रता में वृद्धि हो रही है । ऐसे समय में, मेवाड ही एक ऐसा देश दिखाई देता है, कि जहाँ मक्की तथा जुआर की रोटियाँ और उर्द, चने या मूँग की दाल पर लोग निर्वाह करते हैं । अन्य प्रान्तों में एक साधारण कुटुम्ब के लिये मासिक कम से कम २५-३० रुपये कल्दार तो होने ही चाहिए, जब कि मेवाड़ का उसी श्रेणी का एक साधारण – कुटुम्ब, ७-८ कल्दार में अपना निर्वाह कर सकता है । इस तरह सादगी तथा नम्रता, विनय और भक्ति, प्राचीनता एवं पवित्रता, त्योंही सुन्दरता तथा स्नेहीपन, आदि प्रत्येक क्षेत्र में अपना ऊंचा स्थान रखने वाले मेवाड़ की यात्रा करने का मौका मिले, इसे भी सद्भाग्य की निशानी ही समजना चाहिये न ! फिर भी, इस उच्च कोटि के देश के लिये किसी ने कहा है, कि "मेवाड़े पंच रत्नानि, काँटा भाटा व पर्वताः । चतुर्थो राजदण्डः स्यात् पंचमं वस्त्रलूंटनम् " ॥ ४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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