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मेरी मेवाड़यात्रा
कोई मुसलमान इस मन्दिर को न तोड़े । किन्तु यह बात कहां तक सत्य है यह निश्चित रुप से नहीं कही जा सकती । मन्दिर बनवानेवालों ने स्वयं अथवा उसके पश्चात् जीर्णोद्धारादि के प्रसंग पर, मुसलमानों द्वारा तोडे जाने के भय से भी कदाचित् यह आकार बना दिया हो ।
दूसरी विशेषता यह है, कि मूल नायक श्री पार्श्वनाथजी भगवान की मूर्ति इस तरह बिराजमान
की गई है कि उसके पौष शु० १० के दिन सूर्य की पड़ती थीं । पीछे से जीर्णोद्धार दीवार उँची हो गई, जिससे अब
सामने के एक छिद्र में से किरणें पूरी तरह मूर्ति पर करवाते समय, सामने की उस तरह किरणें नहीं पड़ती ।
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यह तीर्थ पहले अधिक प्रसिद्ध न था । किन्तु स्वर्गस्थ सेठ लल्लभाई कि जिन्होंने मेवाड़ के मन्दिरों के जीर्णोद्धार के पीछे अपनी जिन्दगी पूरी कर दी थी, उसी अमर आत्माने इस तीर्थ में सुधार करवाया और तीर्थ को प्रसिद्ध भी किया । आज कल, इस तीर्थ का संचालन उदयपुर के जैनों की एक कमेटी के अधीन चल रहा है। इस तीर्थ के मैनेजर के रूप में श्रीयुत कनकमलजी कार्य कर रहे हैं । कनकमलजी परम श्रद्धालु मूर्तिपूजक हैं और पूरी लगन के साथ तीर्थ की व्यवस्था कर रहे हैं । कनकमलजी की तत्परता तथा लगन के कारण
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