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उदयपुर के मन्दिर
पयसेवित जसु सुरराणं"।
श्री उदयापुर मंडाणं ॥ १३ ॥ "संवेगीशाले बड़ी विशालं,
प्रासादे जू पास फवैसारं । भी आदिजिणदं तेजदिनंद,
जावरिया देहरा पारं । चौमुख प्रसादं अति आहाद,
दर्शन शुभ ध्यानं"।
श्री उदयापुर मंडाणं ॥ १४ ॥ "वली कुसुल जूपोलं, अतिरंगरोलं,
संगटवाडी सेरीप तासं । श्री संतजिणेशं विमलेशं,
धानमढी सायरपासं । दादावली देहरी, सिखरा सेहरी,
'प्रसाद. महालक्ष्मी स्थाने'..."
श्री उदयापुर मंडाणं ॥ १८ ॥ उदयपुर के मन्दिरों का इतना वर्णन कर चुकने के पश्चात्, कवि ने कोट से बाहर के मन्दिरों का वर्णन किया है।
"श्री शान्तिनाथ ही जिन जोय,
महिमा अधिकमहि सोय । 'चित्रितचैत्य ही नवरंग,
दर्शनदेखियो .उमंग ॥ ५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com