Book Title: Meri Mewad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 123
________________ मेरी मेवाड़यात्रा चिनगारियाँ उड़ने पर भी, गृहस्थों द्वारा अपमान तथा तिरस्कार सहन करने पर भी, गृहस्थों की साधुओं पर अश्रद्धा होने पर मी, 'अतिपरिचयादवज्ञा' का अनुभव रात-दिन करते रहने पर भी, दुःख तथा आश्चर्य का विषय है, कि हमारे मुनिराज गुजरातकाठियावाड को क्यों नहीं छोड़ते होंगे और ऐसे क्षेत्रों में क्यों नहीं निकल पड़ते होंगे, कि जहाँ एकान्त उपकार और शासन सेवा के अतिरिक्त, दूसरी किसी चीज़ का नाम भी नहीं है। पूज्य मुनिवरो, गुजरात-काठियावाड़ छोडकर जरा बाहर निकलो और अनुभव प्राप्त करो। फिर देखोगे, कि तुम्हारा आत्मा कितना प्रसन्न होता है। चारित्र की शुद्धि, धर्म से विमुख हुए लोगों को धर्म में लाना, अजैन वर्ग पर सच्चे त्याग की छाया डालनी, आदि बातों का जब आपको अनुभव होगा, तब आपको इस बात का विश्वास होजायगा, कि वास्तविक उपकार का कार्य तो यहीं होता है। 'मेरी मेवाडयात्रा' के आलेखित इस संक्षिप्त अनुभव पर से कोई भी आत्मा जाग्रत हो और ऐसे देशों में विचरने के उद्देश्य से बाहर निकल पड़े, इस प्रकार की अभिलाषा रखता हुआ, अपने इस अनुभववृत्त को यहाँ खतम करके अपना लेख समाप्त करता हूँ। ॐ शान्तिः । स...मा...स Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 121 122 123 124