Book Title: Meri Mewad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 121
________________ १०४ मेरी मेवाड्यात्रा में कोई रिपोर्ट आवे, तब उस पर चे ध्यान दें और उस असातनाः को दूर करवाने के लिये दी गई सत्ता का उपयोग करेः । सारे मेवाड़ में शायद ही कोई ऐसा मन्दिर होगा, कि- जिसको केशर-चन्दन अथवा अन्य व्यवस्था के लिये दरबार की तरफ से सहायता न मिलती हो। इस सहायता का उपयोग न किया जाय, यह भी एक अपराध है। उदयपुर के महाराणाजी परमदयालु और धर्मात्मा हैं। वे यह बात अवश्यमेक चाहते होंगे, कि मेरे राज्य का किसी भी धर्म का कोई भी मन्दिर, अपूज तो कदापि न रहने पावे। ऐसी अवस्था में, महाराणाजी सा० से प्रार्थना करके, इस प्रकार का हुक्म प्राप्त करने से; मन्दिरों की असातना दूर करने के कार्य में निश्चय ही बहुत कुछ सफलता प्राप्त हो सकती है। आशा है, कि महासभा के महारथीमण, इस बात को अवश्य ही ध्यान में लेंगे और इसके लिये यथासम्भक प्रयत्न भी करेंगे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 119 120 121 122 123 124