Book Title: Meri Mewad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

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Page 119
________________ (११) उदयपुर की महासभा से अब अन्त में, 'मेरी मेवाइयात्रा' का वर्णन समाप्त करने से पूर्व, उदयपुर के समस्त श्री संघ की तरफ से स्थापित हुइ श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के प्रति दो शब्द कह देना उचित समझता हूँ। ___ मेवाड़ की मेरी इस छोटी सी मुसाफिरी के आधार पर मुझे यह बात मालूम हुई है, कि सचमुच ही यह अत्यन्तप्राचीन तथा पवित्र देश है और जैसा कि कहा जाता है, मेवाड़ में हजारों जैन मन्दिर होंगे, इनमें कोई सन्देह नहीं है। इन मन्दिरों की असातना का खास कारण उनके पूमकों का अभाव और जो लोग मूर्ति पूजा में श्रद्धा नहीं रखते, उनके हाथों में इन मन्दिरों की व्यवस्था होना है। वे लोग इतना तो जरूर ही जानते हैं, कि-" स्थानकवासी और तेरहपन्थी मत तो नये निकले हुए मत हैं। मूर्तिपूजा हमेशा से होती आई है । यदि हमारे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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