Book Title: Meri Mewad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

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Page 120
________________ उदयपुर की महासभा से १०३ बापदादे मूर्तिपूजा में श्रद्धा न रखते होते, तो लाखों रुपये खर्च कर के मन्दिरों की रचना ही क्यों करवाते ? " यह सब जानते हुए भी, मूर्तिपूजा के उपदेशकों के अभाव में, मूर्तिपूजा के विरोधी उपदेशकों ने, इन बेचारे भोले लोगों को सत्य धर्म से इस तरह विमुख किया, कि मन में समझते होने पर भी, वे मूर्तिपूजा नहीं कर सकते । विरोधी उपदेशकों ने उन्हें पूजा से विमुख करने के निमित्त, इन बेचारे भोले भाले लोगों को सारे वर्ष में दो या चार बार से अधिक स्नान न करने के नियम करवाकर, इन्हें केवल मूर्तिपूजा से ही विमुख नहा किया, बल्कि शारीरिक तथा मानसिक शुद्धि से भी दूर करके, उन्हें जंगलीजीवन व्यतीत करने वाला बना डाला है । अस्तु । चाहे जो हुआ हो, किन्तु हमारी महासभा का कर्त्तव्य है कि इन मन्दिरों की असानतायें दूर करने के लिये वह यथासम्भव सभी समुचित उपायों का अवलम्बन करे । मैं समझता हूँ, कि इसके लिये एक या दो गिरदावर इन्स्पेक्टर नियुक्त किये जाने चाहिएँ, कि जो मेवाड़ में भ्रमण करे और मन्दिरों की स्थिति का निरीक्षण करते रहे । वे लोग, मन्दिरों की स्थिति की जैसी रिपोर्ट महासभा को भेजे, उसी प्रकार की एक रिपोर्ट उस जिले के हाकिम साहब को भी प्रेषित करे । महासभा, श्रीमान् महाराणाजी साहब से प्रार्थना करके एक हुक्म सभी जिलाधीशों के नाम इस आशय का जारी करवावे, कि जब जब महासभा के इन्स्पेक्टर की किसी मन्दिर की असातना के सम्बन्ध Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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