Book Title: Meri Mewad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

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Page 103
________________ ८६ मेरी मेवाड़यात्रा में मूर्तिपूजा, ईश्वरकर्तृत्व तथा ऐसे ही विभिन्न विषयों पर चर्चाएँ होती रहती थीं। ऐसी प्रशस्त प्रवृत्ति के कारण, जहाँ हमने केवल एक ही महीने का विहारक्रम बनाया— सोचा था, वहाँ हमें अढ़ाई महीने लग गये। जिसके कारण हमें अपना कराँची का प्रोग्राम इस वर्ष के लिये स्थगित कर देना पड़ा । उदयपुर छोड़ने के पश्चात् हमने उपर्युक्त प्रकार से लगभग ३६ ग्रामों का परिभ्रमण किया । इन ग्रामों में विचरने से समुच्चय रूप से जो लाभ हुआ, वह ऊपर बतलाया जा चुका है । इसके अतिरिक्त विशेष लाभ तो यह हुआ कि अनेक ग्रामों में बहुत से स्थानकवासी तथा तेरहपन्थियों ने भगवान् के दर्शन पूजन आदि करने के नियम लिये | बल्कि पुर, कि जहाँ १२५ घर तेरहपन्थियों के थे, उनमें से ६० घर मन्दिरमार्गी हुए। वहाँ पाठशाला मण्डल और लायब्रेरी की स्थापना की गई। आज वे नये बने हुए प्रभुपूजकगण, उत्साहपूर्वक प्रभुपूजा करते हैं और पाठशाला आदि का कार्य सुन्दर रूप से चला रहे हैं । चमारों का जैनधर्म स्वीकार उपर्युक्त लाभों के अतिरिक्त, जो एक खास लाभ हुआ, वह - राजनगर में अनेक चमार जोकि सिलावट का व्यवसाय करते हैं, उनका विधिपूर्वक जैनधर्म की दीक्षा लेना । इन चमार भाइयों ने मांस-मदिराका त्याग किया है। उन्होंने किसी भी प्रकार का व्यसन नहीं रक्खा । यहाँतक कि बीड़ी तम्बाकू आदि का भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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