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मेवाड़ के उत्तर-पश्चिम प्रदेश में
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जानबूझकर इरादतन साधु-साध्वियों को मन्दिर में उतारना, भगवान् की गोदी में पात्र रखना, भगवान् के सामने ही बैठ कर आहार- पानी करना और यदि मौका पड़ जाय तो मूर्तियों को तोड़ने - तुड़वाने की अधमता से भी वे लोग दूर नहीं रह सके हैं । ऐसी अनेक घटनाएँ मेवाड़ में घटने और उनके मुकदमे के उदाहरण मौजूद हैं ।
जहाँ स्थानकवासी भाइयों की बस्ती होगी, वहाँ तो संवेगी साधुओं को उतरने का स्थान और गोचरी पानी अवश्यमेव मिल जायगा । किन्तु, जहाँ तेरहपन्थियों की बस्ती होगी, वहाँ आहारपानी की तो बात ही दूर है, स्थान मिलना भी अत्यन्त कठिन होगा । सामान्य सम्यता जैसे मानुषीय धर्म से भी विमुख बने हुए ये तेरह - पन्थी इस दशा में भी अपने आपको जैन कहलाते हैं, यही अत्यन्त आश्चर्य और दुःख का विषय है । अपने तेरहपन्थी साधु-साध्वी के अतिरिक्त और किसीको भी, फिर वह चाहे साधु हो या दुःखी गृहस्थ – दान देने में वे पाप मानते हैं । एक मनोरंजक घटना सुनिये ।
गंगापुरमें एक तेरहपन्थी गृहस्थ चर्चा करने आया । चर्चा कर चुकने के पश्चात् न जाने किस कारण से उसने मुझसे कहा, कि " मेरे यहाँ साधु को गोचरी भेजिये" । मुझे मालूम था कि यह तेरहपन्थी है । फिर भी गोचरी की विनति करते देख कर मुझे आश्चर्य हुआ । मैंने पूछा कि – “हमको आप धर्म समझ कर गोचरी देंगे, या व्यवहार ?" इसके उत्तर में उसने स्पष्ट रूप से
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