Book Title: Meri Mewad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

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Page 105
________________ ८८ मेरी मेवाड़यात्रा उदाहरणार्थ - देलवाड़ा के मन्दिरों में अनेक शिलालेख हैं । इन शिलालेखों का अधिकांश, वि० सं० १४९० से १५०० तक का । देलवाड़ा, मेवाड़ की पंचतीर्थी में से एक है, अतः उसका वर्णन " मेवाड़ की पंचतीर्थी " नामक प्रकरण में किया गया है। इसी तरह पलाणा का मन्दिर भी विशाल है । उसके आसपास २४ देरियाँ हैं। यहां की चक्रेश्वरी की मूर्ति पर सं० १२४३ की वैशाख शु० ९ शनिवार का लेख है । इस लेख को देखने से प्रकट होता है कि श्री नाणागच्छीय धर्कटवंशीय पार्श्वसुत ने केश्वरी की यह मूर्ति बनवाई और श्री शान्तिसूरिजी ने उसकी प्रतिष्ठा की । इसी तरह सं० १२३४ का एक दूसरा लेख है । अम्बिका की मूर्ति पर के लेख में इस ग्राम का 'पाणाण' के नाम से उल्लेख किया गया है । आजकल इसकी पलाणा के नाम से प्रसिद्ध है । • 1 केलवा के तीनों मन्दिर, एक ऊंची टेकरी पर पास ही पास बने हुए हैं । ये मन्दिर अत्यन्त विशाल और इनकी बनावट रमणीय है । यहां से ग्यारहवीं शताब्दी के शिलालेख प्राप्त हुए हैं । यह वही ग्राम है कि जहाँ से तेरहपन्थी मत के उत्पादक भीखमजी ने तेरहपन्थी मत निकाला था । यद्यपि भीखमजी गुरु से विरुद्ध तो सोजतरोड के पास स्थित बगड़ी नामक ग्राम से हुए थे, किन्तु उन्होंने अपने मत की स्थापना यहाँ से की थी। इन तीनों मन्दिरों में से किसी एक मन्दिर के चबूतरे पर पहले Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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