Book Title: Meri Mewad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

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Page 104
________________ मेवाड़ के उत्तर-पश्चिम प्रदेश में त्याग कर दिया है । उन्होंने अपने लिये भगवान् के दर्शन करके भोजन करने की व्यवस्था की है। जैनधर्म के अन्यान्य नियमों का मी वे पालन करने लगे हैं। इसके अतिरिक्त, वे प्रतिक्रमण का भी अभ्यास करते हैं । ८७ 1 वे अपनी जाति के अन्य भाइयों को जैनधर्म का महत्त्व समझाते हैं । और अभी प्राप्त हुए एक पत्र से प्रकट है, कि उनकी जाति के अन्य अनेक लोगों को जैनधर्म में दीक्षित होने के लिये तयार कर लिया गया है । हमारी मेवाड़ यात्रा का यह काम विशेषरूप से उल्लेखनीय कहा जासकता है । मन्दिर और उनकी स्थिति उदयपुर छोडने के पश्चात् हमने जिन जिन ग्रामों का परिभ्रमण किया, उनमें फतेहनगर, गाडरमाला, तथा पीपली इन तीन ग्रामों को छोडकर शेष लगभग सभी ग्रामों में मन्दिरों के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। किसी किसी ग्राम में तो एक से अधिक, यानी दो-दो, तीन-तीन और चार-चार तक मौजूद हैं। जैसे कि देलवाड़ा, पोटला, पुर, केलवा, भीलवाड़ा, केरवाड़ा आदि । इन मन्दिरों में से बहुत से मन्दिर तो अत्यन्त प्राचीन और ऐतिहासिक घटनाओं से अलंकृत हैं। यहां जो जो मन्दिर देखने को मिले, वे प्रायः ऊंची टेकरियों पर अथवा ऊंची कुर्सीवाले देखे गये । अनेक मन्दिरों में बहुत से शिलालेख मी दीख पड़े । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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