Book Title: Meri Mewad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

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Page 93
________________ मेरी मेवाड़यात्रा सीखरबन्ध ही प्रासाद, करत मेरु सों अतिवाद । श्री पद्मनाभजी जीनाल, देख्या दिल हे खुस्याल ॥ ६ ॥ पृनिम वासरे मेलाक, नर थट्ट होत हे मेलाक । अग्रे हस्ती हे चोगांन, __हस्ती लड़त हे तिहीआन ॥ ७॥" यों उदयपुर के किले से बाहर के मन्दिरों का वर्णन कर चुकने के पश्चात्, कवि आगे बढ़ता है और कहता है, कि"मल्ल लड़त है कुजबार, अग्रे ग्राम है सीसार । बैजनाथ का परसाद, करत गगन से नितवाद ॥१२॥ जिनप्रासाद जू भारीक, मूरत बहोत हे प्यारीक । सखा सोलमा जिणंद, पेष्यां परम हे आनन्द ॥ ११ ॥ आदि चरण हे मंडाण, पूज्यां होत हे सुषपान । जंगी झाड है अति अंग, चाँद जू पोल ही दुरंग ॥१२॥" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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