Book Title: Meri Mewad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

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Page 96
________________ उदयपुर के मन्दिर पूज्यस्वामी का मन्दिर बनानेवाले श्री रायजी दोसी के वंश में, आन श्रीयुत अम्बालालजी दोसी नामक प्रतिष्ठित और धर्मप्रेमी गृहस्थ हैं। ये इञ्जीनीयर हैं। भीखमजी दोसी महाराणा राजसिंहजी के प्रधान मन्त्री थे। वे उदयपुर के ही निवासी थे। सुप्रसिद्ध राजसागर तालाव की पाल और नवचौकी, भीखमजी की ही निगरानी में बने थे । इन्हीं के वंशज अम्बालालजी दोसी हैं । उदयपुर के मन्दिरों में एक प्रसिद्ध और आकर्षक मन्दिर है :-चौगान का मन्दिर । इस मन्दिर में खास विशेषता यह है, कि इसमें मूलनायक, आगामी चौवीसी के प्रथम तीर्थकर श्री पवनाम प्रभु की बैठी लगभग ४॥-५ फीट ऊँची प्रतिमा है । प्रतिमा भव्य और मनोहर है। 'हेम' नामक कवि ने मी, उपर्युक्त वर्णन में इस मूर्ति का उल्लेख किया है । इस विशाल मूर्ति के 'पवासण' पर जो लेख है, उसका सार यों है___“संवत् १८१९ की माघ शुक्ला ९ बुधवार को महाराणा श्री अरिसिंहजी के राजत्वकाल में, उदयपुर निवासी, ओसवालवंशीय, वृद्धशाखीय, नवलखगोत्रीय, शाह..."मान के पुत्र कपुरचन्द ने, खरतरगच्छीय दोसी कुशलसिाजी, उनकी भार्या कस्तुरबाई उनकी पुत्री माणकवाई, आदि की सहायता से यह बिम्ब बनवाया और खरतर गच्छीय श्री हरिसागरगणि ने प्रतिष्ठा की"। इस लेख से जान पड़ता है कि यह मन्दिर प्रस्त प्राचीन तो नहीं है । लगभग पौनेदोसौ वर्षका प्राचीन कहा जासका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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