Book Title: Meri Mewad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

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Page 95
________________ मेरी मेवाड़यात्रा श्री भीमराणा का मुकाम, तिसका होत हे अब काम ॥ १९ ॥" तत्पश्चात्, कवि ने चम्पाबाग का वर्णन करते हुए, उसमें ऋषभदेव के चरण, गच्छपति रत्नसरि का स्तूप आदि होने का उल्लेख किया है। उपर्युक्त वर्णन पर से हम यह बात सरलतापूर्वक जान सकते हैं, कि कवि हेम के समय में, यानी उन्नीसवीं शताब्दी में (जिसे लगभग सौ-सवासौ वर्ष बीत चुके हैं) उदयपुर में चौंतीस मन्दिर थे, जिनमें मुख्य शीतलनाथ का मन्दिर होने की बात कवि कथन से भी जान पड़ती है। आजकल जितने भी मन्दिर हैं, उनमें शीतलनाथ का, वासुपूज्य का, गोडी पार्श्वनाथ का, चौगान का, सेठ का, बाड़ी का आदि मन्दिर मुख्य हैं । यहाँ के मन्दिरों में से कुछ मन्दिर अत्यन्त आकर्षक हैं और कुछ-न-कुछ विशेषता लिये हुए हैं। उदाहरणार्थ-श्री वासुपूज्यस्वामी का मन्दिर । यह मन्दिर, अत्यन्त मनोहर है और मध्य-बाजार में बना हुआ है। कहा जाता है, कि यह मन्दिर महाराणा राजसिंहजी (जिनका समय अठारवीं शताब्दी के प्रारम्भ का माना जाता है ) के समय में श्री रायजीदोसी नामक उदारगृहस्थ ने बनवाया था। ये रायजी दोसी सिद्धाचलजी का सोलहवाँ उद्धार कराने वाले कर्मचन्दजी के पौत्र श्री भीखमजी के पुत्र होते थे। श्री वासु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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