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मेरी मेवाड़यात्रा
नीचे समजने की भावना का ही यह परिणाम है, कि आज उदयपुर के संघ में जैसा चाहिये वैसे
संगठन का अभाव दीख
पास
अनेक मन्दिर, उपाश्रय,
उन
पड़ता है । उदयपुर के संघ के नोहरे, धर्मशाला आदि लाखों रुपये की सम्पत्ति मौजूद है । किन्तु, जैसी चाहिये वैसी संगठन शक्ति के अभाव के कारण, सम्पत्तियों की बड़ी क्षति हो रही है और कुछ जायदाद तो बेकार अवस्था में ही पड़ी हैं। जिस व्यक्तिगत द्वेषके कारण यह हानि हो रही है, वह यदि दूर हो जाय, तो सचमुच ही उदयपुर का संघ एक आदर्श संघ है, ऐसा कहा जा सकता है । प्रसन्नता की बात है, कि ओसवाल या पोरवाल, लोढ़े साज या बड़ेसाज, सेठ या हुम्मड़, मेहता या दोसी, लोढ़ा या नाहर, आदि प्रत्येक प्रकार के भावों को दूर रख कर केवल 'जैन श्वेताम्बर' के नामसे प्रसिद्ध समस्त जैनों की एक महासभा इसी चातुर्मास में स्थापित हुई है । यदि, इस सभा का प्रत्येक सदस्य 'मेरे - तेरे' की भावना को दूर रख कर केवल धर्मोन्नति के कार्यों में शुद्ध हृदय से सहयोग देगा, तो हमारी उपर्युक्त भावना अवश्य सफल होगी, के द्वारा धर्मोन्नति के अनेक कार्य हो प्रसन्नता की बात तो यह है, कि उदयपुर संघ के नवयुवकों में, द्वेष पूर्ण-वृत्तियों का लगभग अभाव ही दीख पड़ता है । वे उत्साही तथा सेवा की भावनावाले हैं, अतः यह आशा अवश्य की जा सकती है, कि उदयपुर का संघ अमी तक जो
और इस महासभा
सकेंगे । अत्यधिक
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