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उदयपुर की संस्थाएँ
करीब बीस वर्ष पूर्व, स्व० गुरुदेव श्री विजयधर्मसूरिजी महाराज की सेवा में, हमने उदयपुर में चातुर्मास किया था। उस समय के उदयपुर में और आज के उदयपुर में, शिक्षा के क्षेत्र में आकाशपाताल का अन्तर दीख पड़ता है । अजैनवर्ग के लिये तो मैं क्या कह सकता हूँ, किन्तु यह बात मुझे खूब याद है कि जैनों में शायद ही कोई ग्रेज्युएट दिखाई देता था। आज केवल ओसवाल समाज में ही दर्जनों ग्रेज्युएट दीख पडते हैं । जिन में से कुछ एम० ए०, एल-एल० बी०, आदि भी हैं। मेवाड़ जैसे प्रदेश में, पिछले बीस ही वर्षों में शिक्षा का आशातीत प्रचार हुआ है, इस में तो कोई सन्देह ही नहीं है। इस शिक्षणप्रचार में वर्तमान महाराणा साहब का शिक्षाप्रेम अधिक कारणभूत है, यह बात जितनी सत्य है, उतनी ही सत्य यह बात भी है कि राजा की भावना की प्रतिध्वनि प्रजा के ह्रदय से होती है । महाराणाजीने, कॉलेज द्वारा उच्च शिक्षा का प्रचार बढाया है। और केवल उदयपुर में ही नहीं,
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