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उदयपुर के जैनों की वर्तमान स्थिति भाँति दिख पड़ते हैं। कमसे कम किसी की मृत्यु के उठावने के समय, त्यों ही विवाहादि के अवसरों पर बड़े से बडे कट्टर वैष्णव, कट्टर स्थानकवासी या कट्टर तेरापन्थी को भी मन्दिर में तो जाना पडता है। एक यही बात इसका प्रबल प्रमाण है, कि सभी
ओसवाल पहले मन्दिरमार्गी थे । हां, उदयपुर में कुछ हुम्मड भी हैं, कि जो श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन हैं। 'सेठ' भी जैनो में की एक जाति है। केवल उदयपुर में ही नहीं, बल्कि मेवाड़ के सनवाड, पुर आदि ग्रामों में भी इस जाति के घर मौजूद हैं। ये लोग, शुद्ध मन्दिरमार्गी होते हैं। अधिक तर ये हलवाई का ही व्यवसाय करते हैं । इन के अतिरिक्त जैन धर्म में एक 'महात्मा' जाति है, जो ‘कुलगुरु' के नाम से प्रसिद्ध है । 'महात्मा' जैनों में पहले खास माननीय जाति समजी जाती थी। किन्तु, कालक्रम से उसमें विद्या का अभाव होने के कारण, वे लोग लगभग बहुत ही दूर पड़ गये हैं। फिर भी, वे शुद्ध जैनधर्म का पालन करते और मूर्ति पूजा में श्रद्धा रखते हैं । उदयपुर में, इस जाति के थोड़े ही घर हैं, जिनमें मुख्य डॉक्टर वसन्तीलालजी हैं कि जो आधुनिकशिक्षा प्राप्त करने पर भी उच्च संस्कारों से युक्त तथा अध्यात्मप्रेमी हैं । देलवाड़े में श्रीलालजी, रामलालजी, और पुर में चम्पालालजी, मोहनलालजीआदि की तरह भिन्न भिन्न प्रामों में महात्माओं को भी मेवाड़ में काफी बस्ती है।
___इस तरह, उदयपुर में ओसवाल, पोरवाल, सेठ, महात्मा, हम्मड आदि सब मिलकर लगभग तीन सौ या साढे तीन सौ घर श्वेताम्बर मूर्तिपूजकों के कहे जाते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com