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[१२] इस भावकापार के अन्त में रचनाकाल नहीं दिया गया है तो भी उक्त बाधार से विक्रम को ग्यारहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध उनका समय सिद्ध है।'
यह ग्रन्थ अनेक बार प्रकाशित हुआ है। ५. द्वानिशिका
इसका प्रचलित नाम सामायिक पाठ भी है । यह बड़ी लोकप्रिय रचना है । जो किसी ने किसी अनुवाद के साथ अनेक बार प्रकाशित हुई है। यह भावना प्रधान ३२ श्लोकों में निबद्ध रचना है । लोकप्रसिद्ध श्लोक--"सस्वेषु मंत्रो गुणिषु प्रमोदं......" इस रचना का आद्य श्लोक है । विभिन्न जिनवाणो संग्रहों में इसका प्रकाशन होता ही है । इसके हिन्दो पद्यानुवाद भी हुए हैं। इसे प्रायः सर्वत्र सामायिक का अंग माना जाकर सामायिक में बोला जाता है। ६. तत्व भावना
इसका नाम भी सामायिक पाठ है । यह १२० पद्यों में रचित एक संस्कृत भाषा की भावनात्मक रचना है । इस रचना पर गुणभद्र के प्रात्मानुशासन का स्पष्ट प्रभाव है । करिता की शैली सरस, सरल तथा हृदयग्राही है। ७. आराधना
यह कृति इतनी अच्छी है कि जैसे यह शिवार्य (शिवकोटि) की प्राकृत धाराधना का निकटतम अनुवाद हो।
यह सोलापुर से सन् १९३५ में प्रकाशित हुई है।"
जहाँ तक मुझे ख्याल है इसका अभी तक हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशन नहीं हुधा है । इसका नाम "मरणकहिका" ग्रन्ध में प्रदत्त है ।
___ मैं पहली बार ही इस मरणकडिका (प्राराधना) का यह प्रांजल, सरल, सहज व सरस अनु. वाद पूज्य जिनमति माताजी कृत देख रहा हूं।
इसका विषय-परिचय एवं अन्य भी विशिष्ट परिचय पूज्य माताजी स्वयं इसी ग्रन्थ में दे ही रहीं हैं, अतः यहाँ नहीं लिखा जाता है।
१. श्रावकाचार संग्रह भाग ४ प्रस्तापत्र २७-२८ पं.हीरालाल सि.पा. २. योगसार प्राभूत प्रस्ताव पत्र १२ ३. पं. कैलाशचन्द्र सि० शा० ४ धर्म परीक्षा । प्रस्ता० पृ० २२ ए. एन. उपाध्ये ५ योपसार प्राभूत । प्रस्ता० पृ. १२