________________
[
२२ ]
(३०) प्रत्याख्यान-क्षपक द्वारा तीन प्रकार के आहार का यावज्जीव तक त्याग किया जाता है।
एक पेय पदार्थ ग्रहण करता है वह किस प्रकार होना इसका वर्णन है । इसमें १० श्लोक हैं। (३१) क्षामण-चतुर्विध संघ के समक्ष क्षपक द्वारा क्षमा याचना का सुन्दर विवेधन इसमें है। इसमें
४ कारिकायें हैं। (३२) क्षपण-समाधि में स्थित साधु अत्यन्त विशुद्ध एवं दृढ़ वैराग्य परिणाम द्वारा असंख्यात गुण श्रेणी निर्जरा करता है । इसका कथन इसमें है । इसमें ६ कारिकायें हैं।
अनुशिष्टि महाधिकार (३३) अनुशिष्टि समाधिस्थ क्षपकराज मुनि एवं अन्य सभी साधु समुदाय को आचार्य द्वारा पंच
महादत प्रादि का अत्यन्त सुन्दर अतिविस्तृत उपदेश इस महाधिकार में दिया गया है । एक एक महादत का इस प्रकार का हृदयस्पर्शी वर्णन भगवती आराधना ग्रन्थ तथा इस मरणकण्डिका ग्रंथ को छोड़कर अन्यत्र कहीं पर हाटगोचर नहीं होता है । इस अधिकार के दो श्लोक सूत्र रूप हैं
मिथ्यात्ववमनं दृष्टि, भावनां भक्तिमुत्तमा ।
रति भाव नमस्कारे, ज्ञानाभ्यासे कुरूद्यमम् ॥ ७५३ ॥ अर्थात- हे क्षपकराज साधो! तुम मिथ्यात्व का यमन करो, सम्यक्त्व को भावना करो, परमेष्ठियों
में उत्तम भक्ति करो, परिणाम शुद्धि रूप भाव पंचनमस्कार में रति और ज्ञानाभ्यास में प्रयत्नशील होवो। सूत्ररूप इस कारिका में निर्दिष्ट मिथ्यात्व वमन का उपदेश ग्यारह श्लोकों में है इसी में मिथ्यात्व दोष से जिसकी आँख फूट गयी थी, ऐसे संघश्री नामा व्यक्ति की कथा का उल्लेख है । सम्यक्त्व भावना के वर्णन में नौ श्लोक है, राजा श्रेणिक की कथा है । भक्ति वर्णन में नो श्लोक हैं राजा पधरथ की कथा है । पंच नमस्कार का वर्णन करनेवाले सात श्लोक हैं । सुभग ग्धाले की कथा है । ज्ञानाभ्यास के वर्णन में सप्तरह श्लोक हैं इसमें यममुनि तथा दृढसूर्य चोर की कथा है । दूसरा सूत्ररूप लोक
मुने महाव्रतं रक्ष, कुरु कोपादि निग्रहम् ।
हृषीक निजयं द्वे'धा, तपोमार्गे कुरूद्यमम् ।। ७५४ ।। अर्थ- हे मूने ! महावत की रक्षा करो, क्रोध, मान, माया और लोभ का निग्रह करो, इन्द्रियों पर
विजय प्राप्त करो, दो प्रकार के बाह्य अभ्यन्तर तप मार्ग में उद्यम करो। इस श्लोक में उल्लिखित चार विषयों में से पंचमहाव्रतों का वर्णन श्लोक ८०५ से १४२१ तक है । कषाय निग्रह और इन्द्रिय विजय वर्णन सम्मिलित रूप से १४२२ से १५१८ तक है । तप का वर्णन