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[ २० ] (१३) क्षमण-समस्त संघ को बुलाकर समाधि के इच्छुक आचार्य सर्व संघ के समक्ष क्षमा याचना
करते हैं । इस में ३ श्लोक हैं। (१४) अनुशिष्टि --समाधि के इछुक आचार्य नवीन बनाये गये प्राचार्य को शिक्षा उपदेश देते हैं
कि जिस प्रकार नदी का प्रवाह उद्गम स्थान में पल्प और सागर में प्रविष्ट होते समय विशाल होता है उस प्रकार आप अपने स्वयं के व्रताच रस में तथा संघ के प्रताचरण में प्रवृति करना अर्थात् उत्तरोत्तर ब्रताचरण में वृद्धि करते रहना, संघस्थ साधु द्वारा आलोचना करने पर उनके दोष कभी भी प्रगट नहीं करना इत्यादि तथा शिष्यों को भी हृदयस्पर्शी उपदेश देते हैं । इसमें यह शिक्षा दी है कि आप मुनिगण कमी भी पार्श्वस्थादि भ्रष्ट मुनियों की संगति नहीं करना तथा प्रायिका की संगति कभी भो नहीं करना। इसमें ११२ कारिकायें हैं । परगणचर्या-समाधि के इच्छुक आचार्य दूसरे संघ में समाधि के लिए प्रवेश करते हैं-जाते है जिसमें अपरिस्रावी आदि गुणों से भूषित निर्यापक आचार्य हो । यदि अपने संघ में हो आचार्य समाधि करेगा तो बाल आदि मुनिजनों पर ममत्व होने से या किसी अज्ञानी मुनि द्वारा आज्ञा भंग होने से परिणाम क्लेशित होकर समाधि नष्ट होगी इत्यादि । इसमें १६
कारिकायें हैं। 185) मार्गणा-निर्यापक प्राचार्य अर्थात् जिसे सल्लेखना कराने की विधि ज्ञात है, वयावृत्य में रुचि सम्पन्न है ऐसे आचार्य का अन्वेषण करना । इसमें १६ कारिकायें हैं ।
सुस्थितादि अधिकार (१७) सुस्थित-निर्यापक आचार्य के पाठ गुण हैं--प्राचारवान्, आधारवान्, व्यवहारवान्, प्रका
रक, आयापायहम्, उत्पीडक, सुखकारी और अपरिस्रावी । इन सबका विस्तृत विवेचन, इस अधिकार में है । अपरित्रात्री गुण उसे कहते हैं जो क्षपक के महान् से महान् दोष को भी प्रगट न करे । जिस प्रकार गरम तबे पर जल की बूंद समाप्त होती दिखायी नहीं पड़ती वैसे जो प्राचार्य क्षपक के दोष को नहीं दिखाता । यदि आचार्य अपरिस्रावी गुरण युक्त नहीं है तो
क्षपक को महान हानि तथा धर्म का ह्रास होगा इत्यादि । इसमें १७ कारिकायें हैं । {१८) उपसर्पण-निर्यापक प्राचार्य के प्राप्त होने पर उनके निकट अपने प्रागमन का हेतु बतलाकर
विनयपूर्वक आलोचना आदि के विषय में निवेदन करना तथा निर्यापक आचार्य द्वारा जरा
अभ्यागत साधु को भाश्वासन देना । इसमें ६ कारिकायें हैं। ११) परीक्षग--निर्यापक प्राचार्य अभ्यागत समाधि के इच्छुक साधु का परीक्षण करते हैं कि
इसमें सल्लेखना के प्रति कितना उत्साह है तया निमित्त आदि द्वारा यह भी देखते हैं कि रामाधिमरण निविघ्न होगा या नहीं । इसमें ३ कारिकाएं हैं ।