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बालमरणाधिकार
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विज्ञातव्यमयोगानां, सत्र पंडितपंडितम् । देशसंयत जीवानां, मरणं बालपंडितम् ॥३१॥ पादोपगमनं भक्त, प्रतिज्ञामिङ्गिणीमृति । वान्त पंडित धा, योगिनो युक्ति चारिणः ॥३२॥ भजते मरणं बालं, सम्पदृष्टिरसंयतः । मिथ्यात्व कुलित स्वान्तो, बाल बालमपास्तधीः ।।३३।।
अर्थ-अब यहाँ पर पाँच प्रकार के मरणों के स्वामी कौन कौन हैं इसका क्रमशः तोन कारिका द्वारा प्रतिपादन करते हैं। पंडित पंडित नामका मरण अयोगी जिनके होता है अर्थात् चौदहवें गुणस्थान के अन्त में आधुपूर्ण होकर जिनेन्द्र भगवान जो निर्वाण को प्राप्त करते हैं उसे पंडित पंडित मरण कहते हैं। देशसंयतनामा पंचम गुणस्थानवी जीवों के बाल पंडित मरण होता है ।।३१।।
अर्थ-निर्दोष चारित्र पालन करने वाले साधु जनों का पंडितमरण होता है, उसके तीन भेद हैं-भक्त प्रतिज्ञामरण, इंगिनी मरण और प्रायोपगमनमरण ॥३२॥
भावार्थ-छठे गुणस्थान से लेकर ग्यारहवें गुणस्थान तक के मुनिजनों के जो मरण होता है वह पंडित मरण है । इन गुणस्थानों में मरण करने वाले मुनिराज नियम से चैमानिक देवों में उत्पन्न होते हैं।
अर्थ-बालमरण असंयत सम्यग्दृष्टि के होता है। मिथ्यात्वकर्म के उदय से जिनका चित्त संक्लिष्ट है ऐसे कुबुद्धि-मष्ट बुद्धिवाले मिथ्यादृष्टि जीवों के बाल बाल मरण होता है ॥३३॥
विशेषार्थ-पाँच प्रकार के मरणों के स्वामो गुणस्थानों के क्रमानुसार इस प्रकार हैं- प्रथम गुणस्थान में बाल बाल मरण होता है तथा द्वितीय सासादन गुणस्थान में भी बाल बाल मरण होता है। क्योंकि मिथ्यात्व को चिर संगिनी कषाय अनन्तानुबन्धो का यहाँ उदय है। तीसरे मिश्र गुणस्थान में मरण नहीं है । चतुर्थ असंयत गुणस्थान में बाल मरण होता है। मिथ्याइष्टि जीव श्रद्धा और चारित्र दोनों से बाल (अज्ञानी-मूर्ख) हैं अतः उसके भरण को बाल बाल मरण कहते हैं अर्थात् इसके न सम्यक्त्व है और न चारित्र है । असंयत सम्यग्दृष्टि के श्रद्धा है किन्तु चारित्र