________________
भनुशिष्टि महाधिकार
[३१५ शांतोऽपि क्षोभ्यते मोहो युवसंगेन देहिनः । कर्दमः पतता क्षिप्रं प्रस्तरेणेव वारिणः ॥११२३।। उदोर्णोऽप्यंगिनो मोहो वृद्धसंगेननिश्चितम् । पंक: कतकयोगेन सलिलस्येव शाम्यति ॥११२४।। शांतोप्यूदीयते मोहः पुंसस्तरुणसंगतः । लोनः किं मृत्तिकागंधो नोदेति जलयोगतः ।।११२५ । रहितो युवसंगत्या मोहः सन्नपि लोयते । जीवस्य जलसंगत्यापुष्पगंधइवस्फुट ॥११२६।।
.---. ... ... . . भावार्थ-मनुष्य की आयु जैसे जैसे कम होती है अर्थात् वृद्धत्व पाता है सेवैसे उसका विषयों में प्रेम कम होता है, रति कोड़ा मंद होती है, खोटे भाव, काम सेवन की इच्छा कम होती है, सरुण अवस्था में ये काम आदिक विकार दुनिवार होते हैं। युद्धत्व आनेपर सब विकार शांत होने लगते हैं इसीलिये वृद्ध पुरुषोंकी सेवा उनका सहवास ब्रह्मचर्य में महान् उपयोगी होता है।
__ जीवोंका मोह शांत भी हुआ हो किन्तु वह तरुणके संसर्गसे क्षुभित हो जाता है, जैसे जल में पत्थरके गिरने से शांत भी कर्दम कीषड शीघ्र ही क्षुभित-उछल जाता है उससे जल मलिन बन जाता है । भाव यह है कि किसी पुरुषका मन शांत है काम विकार शोत है तो भी उसे तरुणका संसर्ग नहीं करना चाहिये क्योंकि उसके संसर्ग से मनविकार युक्त होता है ॥११२३।।
इस जीवका मोह बढ़ा हुआ भी हो तो वह भी वृद्धजनोंके संपर्क से निश्चित ही शांत हो जाता है, जैसेकि जलका कर्दम कतक द्रव्य-फिटकरी आदिसे शांत हो जाता है । अर्थात् जलका कीचड़ फिटकरीसे नीचे बैठ जाता है वैसे वृद्धको संगतिसे बढ़ा हुआ भी कामविकार शांत होता है ॥११२४।। किसी पुरुषका मोह शांत हुआ है किन्तु यदि उसने तरुण पुरुषको संगतिको है तो उसका मोह प्रगट हो जाता है बढ़ जाता है । ठीक हो है ! मिट्टीकी गंध यद्यपि स्वयं शांत अर्थात् अप्रकट है उसमें कोई गंध नहीं आरही है तो भी उस मिट्टीकी गंध जलके संयोगसे क्या प्रगट नहीं होती ? होतो हो है ।।११२५।। मोह मौजूद है किन्तु वह पुरुष तरुणको संगति से रहित है तो उसका मोह