Book Title: Marankandika
Author(s): Amitgati Acharya, Jinmati Mata
Publisher: Nandlal Mangilal Jain Nagaland

View full book text
Previous | Next

Page 671
________________ पंडित पंडित मरणाधिकार पारुह्य क्षपश्रेणीमपूर्वकरणो यतिः । भूत्वा प्रपद्यते स्थाननिवृत्तिगुणाभिधम् ।।२१६६॥ सूक्ष्मसाधारणोघोतस्त्यानद्धियातपान् । एकायिकलाख्यानां जाति तिर्यग्द्वयं मुनिः ।।२१६७।। स्थावरं नारकर षोडश प्रकृतिरिमाः । प्लोषते प्रथमं तत्र शुक्लध्यानकृशानुना ॥२१६८।। कषायामध्यमानष्टौ पंढवेदं निकृन्तति । स्त्रीवेदं क्रमतः षट्कं हास्यावोनां ततः परम् ।।३१६६।। करणोंको करता है उसमें अंतिम अनिवृत्तिकरणमें मिथ्यात्व प्रकृतिको तथा मिश्रप्रकृति को सम्यक्त्व प्रकृति में संक्रामित करके नष्ट करता है पुन: सम्यक्त्व प्रकृतिको नष्ट करता है । इसप्रकार सात प्रकृतियोंका नाशकर क्षायिक सम्यक्त्वी बनता है। तीनों करणोंका स्वरूप तथा इनमें होनेवाले स्थिति खंडन, अनुभाग खंडन, गुणश्रोणि निर्जरा आदिका स्वरूप लब्धिसार आदि सिद्धांत ग्रन्थों में विस्तार पूर्वक बताया है। विशेष जिज्ञासुप्रोंको वहींसे अवलोकनीय है । इसप्रकार क्षायिक सम्यक्त्वी होकर वह साधु क्षपक श्रेणी में आरोहन करता है उसमें क्रमश: अध:करण-सातिशय अप्रमत्त गुणस्थान तथा अपूर्वकरण नामके आठवें गुणस्थानको प्राप्तकर नौवें अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में आता है ।।२१६६।। नौवें गुणस्थानमें सूक्ष्म, साधारण, उद्योत, स्त्यानगृद्धि आदि तीन निद्रा, आतप, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय ये चार जातियां तियंचगति, तिर्यंचगत्यानपूर्वी, स्थावर, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी इन सोलह कर्मप्रकृतियों का प्रथम शुक्ल ध्यान-पृथक्त्व वित्त वीचार रूप अग्नि द्वारा नाश करते हैं ॥२१६७३।२१६८॥ तदनंतर उसी गुणस्थान में क्रमशः प्रत्याख्यानावरण, अप्रत्याख्यानावरण नामको आठ कषायें नष्ट करते हैं, पुनः नपुंसक वेद पुनः स्त्रीवेद तदनंतर हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा इन छह कषायोंका युगपत क्षय करते हैं ।।२१६६ ।। पुनः वहों पर शुक्लध्यान रूप तलवारसे पुरुषवेदको काटकर संज्वलन क्रोध, संज्वलन मान, संज्वलन मायाका क्षय करते हैं । इसप्रकार अनिवृत्तिकरण नामके नौवें

Loading...

Page Navigation
1 ... 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749