Book Title: Marankandika
Author(s): Amitgati Acharya, Jinmati Mata
Publisher: Nandlal Mangilal Jain Nagaland
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६७६ ]
मरणकंडिका
श्लोक मुं० पृष्ठ सं०
१२१
४२
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40
२३३
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२५६
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५५५
५२७
२००
२०८
८७३
२६६
१२२
लोक सं० पृष्ठ संग कस्यचित क्रिपमारणे पि
का कास्त्र कि नाम ते काल: १५५३
कायिको बापिकातः कमजलि पुटैः पीत्वा
कार्याय स्वीकता शय्या कर्कशे निष्ठुरे मिश्रियणे भाषणे १६७० ४५ कांदपी कैल्बिषी प्राई कमप्युिदीर्य मानाणि
४६२ कामे भोगे गणे देहे कर्मणा पसतीन्द्र तु
४६३ काष्टाश्म तृणभू शय्या काँग्यामिति ज्ञात्वा
१७०५
कालो द्वादश वर्षाणि कलेबर मिवंत्याग्य
१७६१ ५०७
कारप्रय माप कल्याण प्रापकोपाय
१७९७ ५२२ कामेऽमुकत्र देशे वा कर्मोदये मति याति
१८१४
कालानुसारतो ग्राह्या कर्म मागन सहानि बनाना १६३१
कालानुसारतो ग्राह्यो करोति पात कं जन्तु
१८३२ ५३१ कालकूटं यथानस्य कषाय पट्टिका र
१८५३
कामाकुलित वित्तम्य कर्मात्रवति जीवस्य
साम्यमान जनं कामी कम सम्बन्धता जाता
कामी शूरोऽपि तीक्ष्णोऽपि पल्म कार्यते पोरं
१६१६
कामावना कुच फलानि कषाय तस्करा रौद्रा
कालेयकानि सप्तांग कर्मभिः शक्यते भेस
१९३२ ५६० कायः कृमि कुनाकोएं: कवाय संयुगे ध्यान
कायो जर्मः पयोषीनो कषाय व्यसने मिन्न
१९८१
कापिल्य नगरेऽपि कषायाति छाया
१९८२ ५७७ काय क्रिया निवृत्ति कमायो ग्रन्थ खगेन
१९९५
कामिभि भोंग सेगाया कर भावनाशीला:
२०३६
कालरस्वं न कुर्वन्ति करोत्येनं ततो घोगी
६१९ कास शोश हचिदि कवायामध्यमानष्टी २१६९
काण्डवेगेन करास्थित मिवाशेवं
२१७६
कोमतोऽपि न जीवस्य कर्मभिः क्रियते पातो
५४३ काले तीतेऽभवद सर्व कष्टक विनाशन
२२२९
काले न निर्जरा नून करोति वशतिनीस्विरम २२३५६४८ । काल त्रितय भाषीनि
१४३
९७२
२७९
५५६
१०५१
३०५
३०७
१२४५
१
३८४
५९०
१६२१
४६४
४९२
१८४४
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