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मरसकषिष्टका
छंद-रथोद्धताएकवा शुभमना विपद्यतं मालपस्तिमृति समेत्य यः । स प्रपद्य नरदेवसंपदं सप्तमे भवति निQतो भवे ॥२१५६॥
॥ इति बालपंडितम् ॥
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परिणामवाला देशद्रती एकबार या एक भवमें बालपंडित मरणको ग्रहण करता है वह मनुष्य और देव संबंधी अभ्युदय सुखोंको प्राप्त करके सातवें भवमें मोक्ष चला जाता है ।।२१५७॥२१५८॥२१५६५
विशेषार्थ-बाल पंडितमरण संयतासंयत नामके पंचम गुणस्थानवी जीवोंके होता है । इसमें जीव बाल इसलिये है कि पूर्ण संयम धारण नहीं किया है और पंडित इसलिये है कि अणुव्रत धारण किये हैं । अनंतानुबंधी और अप्रत्याख्यान कषायोंका इसमें उदय नहीं है । शेष प्रत्याख्यान प्रादिका उदय है । इस बाल पंडित मरणको पहली प्रतिमासे लेकर ग्यारहवीं प्रतिमा तकके जीव प्राप्त करते हैं तथा आर्यिकाओंके मरणको भी बाल पंडितमरण कहते हैं क्योंकि आयिकाओं के उपचार महावत होते हुए भी गुणस्थान पांचवाँ ही होता है । इसप्रकार प्रतिमाधारी श्रावक श्राविका, ब्रह्मचारी ब्रह्मचारिणी, क्षुल्लक लल्लिका ऐलक और आर्यिकायें इन सबका भक्त प्रतिज्ञा पूर्वक यदि मरण होता है तो वह बाल पंडित मरण कहलाता है । ये सभी जीव सम्यग्दृष्टि तो हैं ही साघमें यदि कुछ समयके लिये आहार एवं कषायभावका त्यागकर सन्यासपूर्वक मरण करते हैं तो वह बाल पंडितमरण कहलाता है ।
बाल पंडितमरणका कथन समाप्त ।