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अनुशिष्टि महाधिकार
[ ३११ हंतुमने कृतो मूढो दुनिधारेण मृत्युना । सेवते विषयं वध्यः पाणेनेव सुरादिकम् ॥१११२॥ व्याघ्र गाग्रे कृतो हेतु बिले साऽजगरे गतः । छिद्यमाने सुई लग्नो मूले विविधमूषिकः ॥१११३॥
सुरत राजाको कथाअयोध्याका नरेश सुरत नामका था पांच सौ रानियोंकी शिरोमणि सती नामकी प्रमुख रानी पर अत्यधिक स्नेह होने से सदा उसके निकट रहता था। राजाके मन में मुनिदानका तो बहुत भाव रहता था उसने सब राजकार्य छोड दिये थे किन्तु मुनियों को आहार देनेका कार्य हमेशा करता रहता, अन्य कार्य सब मंत्रियों पर छोड़ा था। एक दिन अपनी प्राण प्रियाके कपोल पर तिलक रचना कर रहा था इतनेमें आहारार्थ अनिका आगमन हुआ ; सजा रामोका श्रृंगार करना छोड़कर आहार देनेको चला गया । रानीको इससे क्रोध आया उस पापिनोने बहुत अपशब्द गाली अपवाद आदिसे मुनिकी महान निंदा की सब सखी दास दासियोंके समक्ष बहुत कुछ दुष्ट निंद्य वाक्य कहती हो रही इससे मुनि निदारूप भयंकर पापसे उसके शरीरमें तत्काल गलित कुष्ठ हो गया ! दुगंध आने लगी । राजा आहार देकर लौटता है और रानीको दशा देखकर स्तंभित हो जाता है । उसको वैराग्य होता है सर्व राज्यपाट छोड़कर जिनदोक्षा ग्रहण करता है । रानी कुछ समय बाद मरकर दुर्गतिमें चली जाती है । इसप्रकार यौवनका जोश, रूपका गर्व करनेसे रानीकी दुर्दशा हुई ।
कथा समाप्त । जैसे कोई चांडाल आदि नीच पुरुष है उसको अपराधके वश मृत्यु दण्ड मिल चुका है उस वक्त भी वह सुरापान आदि करता है (आयी हुई मृत्युका सोच नहीं करता है) वैसे मूर्ख पुरुष दुनिवार मृत्यु द्वारा मारने के लिये आगे करने पर भी अर्थात मत्यु निकट आ जानेपर भी विषयका सेवन करता है ॥१११२।।
जिसको मारने के लिये आगे ब्याघ्र खड़ा है ऐसा कोई पथिक जिसमें अजगर है ऐसे कूपके वृक्षकी डालको दृढ़तासे पकड़ लेता है, वृक्षको जिस डालको पकड़ा है वह विविध चुहों द्वारा काटा जारहा है, ऐसी भयानक स्थिति में पड़ा वह मूढबुद्धि आगेकी