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अनुशिष्टि महाधिकार
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स दुःखमयशोऽनर्थ कल्मषं द्रविणक्षयम् । संसारसागरेऽनते भ्रमणं च न मन्यते ॥६४०॥ उच्चोऽपि सेवते नोच विषयामिषकांक्षया । स्मरातः सहतेऽवज्ञां मानवानपि मानवः ।।६४१॥ कुलीनो निदितं कर्म कुरुते विषयाशया। जिघृक्षनर्तकों वृत्तं चारित्रं त्यक्तवान कि ॥४२॥
१९३८॥ जो कामी पूज्य पंचपरमेष्ठियोंके अवर्णवादको करता है उस कामीके अकार्य करते हुए मर्यादा कहाँसे होगो ? कामो तो सब मर्यादाओंको भंग कर डालता है ।।६३६॥
भावार्थ-कामीपुरुष परहंत आदि पंचपरमेष्ठियोंकी निंदा करता है, यदि स्वयं मूनि है तो कामके वश होकर मुनिपने का त्याग भी कर देता है । इसतरह कामी सब कुछ अकृत्यको करने लग जाता है ।।
__ कामी पुरुष विषयासक्त हुआ अपने दुःखको अपयशको, अनर्थको, पापको, धननाशको नहीं मानता है तथा अनंत संसार सागर में भ्रमण होगा यह नहीं मानता है भाव यह है कि मैं काम वासनासे अपने ब्रह्मचर्य व्रतका (अणुव्रत या महाव्रतरूप ब्रह्मचर्यका) कुलोन आचरणका नाश करूगा तो मुझे दुर्गतिमें महान दुःख भोगना पड़ेगा। इस लोकमें धनका नाश अपकीति आदि होंगे, अंतमें संसारमें चिरकाल तक घूमना पड़ेगा, ऐसा कामीको विचार नहीं आता है ।।९४०।। विषयसेवनके लिये उच्चकुलीन भी कामो नीच-जाति कुलादिसे होन पुरुषको सेवा करता है, मानो होकर भी अवमानको सहता है ।।९४१।। कुलीन भी कामो पुरुष विषय सेवनकी इच्छासे निन्छ कर्म करता है क्या नर्तकीको प्राप्त करने की इच्छावाले साधुने अपना सुदर आचरणवाला चारित्र छोड़ नहीं दिया था ? ॥९४२।।
___ वारत्रिक नामके भ्रष्ट मुनिको कथा
करुजांगल देशमें दत्तपुर नगर में शिवभूति ब्राह्मणके दो पुत्र थे, सोमशर्मा और शिवशर्मा । दोनोंको विप्रने वेद पढ़ाया । किसो दिन छोटा भाई शिवशर्मा वेदके सूत्रोंका अशुद्ध उच्चारण कर रहा था । बड़े भाई सोमशर्माने उसको शुद्ध पढ़ने को कहा किन्तु