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अनुशिष्टि महाधिकार
[ २७६ भवंति सकला दोषा नवामी ब्रह्मचारिणः । संपर्धते गुणाश्चित्रास्तद्विपक्षा विरागिणः ॥९७१॥
छंद-वसंततिलकाकामावना कुचफलानि निषेवमाणा रम्ये नितंबविषये ललनामदीनाम् । विधम्य चारुववनाम्बु निपीयमानाः सौख्येन नारकपुरीं प्रविशति नीचा:।१७२।
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पिंगकी करतूत है । उसने पतिको समझाया कि द्वीपांतर जानेका केवल दिखावा करो आगे की बात मैं सम्हाल लगी । कडारपिंग कुबेरदतको द्वीपांतर गया समझकर प्रियंगुसुदरोके पास मालक सामान दरोने माझाने के कमरेको साफ सुथरा कराफे उसमें एक बिना निवारके पलंगपर एक चादर बिछा दिया था, प्रियंगुसुदरो ने आये हुए कहारपिंगको उक्त पलंगपर बैठने को कहा। जैसे ही वह पापी बैठने लगा वैसे ही धड़ामसे अत्यंत दुगंधमय पाखानेके मैल में जा पड़ा । अब कडारपिंगको बहुत पश्चात्ताप हुआ उसने निकालने के लिये सुदरोसे बहुत प्रार्थना की किन्तु पापका फल भोगने के लिये उसने उसको नहीं निकाला। छह मास व्यतीत होनेपर कुबेरदत्तने द्वीपांतरसे आनेका बहाना किया। राजा और मंत्रीने उसे जो किंजल्क पक्षी लानेको कहा था, सेठने पाखाने से कडारपिंगको निकालकर उसको पक्षियोंके पंख लगाकर मुख काला कर हाथपैर बांध पोंजड़े में डालकर राजाके समक्ष उपस्थित किया तथा वास्तविक सब वृत्तांत कह सुनाया । राजाको कडारपिंगके ऊपर कोप पाया और उसने उस कामो पापीको प्राणदंड दिया, कडारपिंग मरकर नरक गया । इसप्रकार परायी नारीके सेवन का भाव करनेसे तथा साक्षात् सेवन करने से महाभयानक दुःख उठाना पड़ता है ऐसा जानकर इस पापसे विरक्त होना चाहिये।
कडारपिंगकी कथा समाप्त । ऊपर कहे गये समस्त दोष ब्रह्मचारी के नहीं होते हैं, उस विरागीके तो उन दोषोंसे विपक्षभूत अनेक अनेक मनोहर गुण ही हुआ करते हैं ।।९७१।।
कामुक नोच पुरुष स्त्री रूपो नदियों के रम्य नितंबविषय में कामरूपी रास्तेसे आकर कुचरूपो फलोंका सेवन कर वहां विश्राम करके स्त्रोके मुखका जल (लार) पोता हुआ सुखपूर्वक नरकपुरीमें प्रवेश कर जाता है ।।६७२।।