Book Title: Manivai Chariyam
Author(s): Jinyashashreeji
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir
View full book text
________________
मणिपति चरित्रे
'सामि ! इमं मह दिज्जउ 'सो भणइ 'न देमि दिन्नमेया' । ताहे रन्नीया रुट्ठा मरणत्थं चडइ पासाए ॥ ५३ ॥ वायायणविवरेण पतामि याइ हिओ हुत्तं । जा नियइ ताव पिच्छइ तलट्ठिए तिन्निजणे ॥ ५४ ॥ मिंढं तह आरोहं मंतंतं मउय-मउयवयणेहिं । महसेणागणियाए समयं अइआउलमणाए ॥ ५५ ॥ तं दट्ठूणं देवीए चितियं किं इमाई मंतंति । निसुणेमि ताव मरणं पच्छावि हु मज्झ साहीणं ॥ ५६ ॥ परिभाविऊण एयं अवहिय-हियया निसामिउं लग्गा । अह वेसाए भणिओ आरोहो महुरवयणेहिं ॥ ५७ ॥
२८
स्वामिन् ! इदं मह्यं दीयतां सो भणति न ददामि दत्तं एतस्मै । तदा राज्ञी रुष्टा मरणार्थमारोहति प्रासादे ॥ ५३ ॥
वातायनविवरेण पतामि एतया अधोभूत्वा ।
यावत् पश्यति तावत् प्रेक्षते तलस्थितान् तत्र त्रीन् जनान् ॥ ५४ ॥ मेंठं तथा आरोहकं मन्त्रयन् मृदुकमृदुकवचनैः । मगधसेनागणिकया समकं अतिआकुलमनसा ॥ ५५ ॥
तं दृष्ट्वा देव्या चिंतितं किं इमे मन्त्रयन्ति ।
निशृणोमि तावत् मरणं पश्चादपि खलु मम स्वाधीनम् ॥ ५६ ॥
परिभाव्य एवं अवहित - हृदया निश्रोतुं लग्ना । अथ वेश्यया भणित आरोहको मधुरवचनैः ॥ ५७ ॥
१. अवहिय-अवहित वि. सावधान.

Page Navigation
1 ... 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154