Book Title: Manivai Chariyam
Author(s): Jinyashashreeji
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir
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मणिपति चरित्रे वृषभकथा
चंपाए नयरीए मुक्को माहेसरेण धम्मत्थं । संढत्तणेण एगो वसहो गोवग्गमझंमि ॥ २ ॥ सो बाढं दप्पिट्ठो विणिज्जिया सेस-संढसंघाओ । थूलतणू बलवंतो चिट्ठइ सययं निरुव्विग्गो ॥ ३ ॥ सो अन्नया अकम्हा भद्दतं पाविओ विहिवसेणं । गोवग्गं मोत्तूणं चिट्ठइ नयरीइ मज्झम्मि ॥ ४ ॥ दंडहओ वि न रुसइ विसिट्ठसन्नाइ मुणियपावफलो। भद्दवसहो ति ताहे विक्खाओ लोगमज्झम्मि ॥ ५ ॥ तत्थेव य जिणदासो सुसावसो वसइ मुणियजिणवयणो । सो किसिण-चउद्दसीए सुन्नधरे संठिओ पडिमं ॥ ६ ॥
चम्पायां नगर्यां मुक्तो माहेश्वेरण धर्मार्थम् । षण्ढत्वेन एको वृषभो गोवर्गमध्ये ॥ २ ॥ सो बाढं दर्पिष्टो विनिर्जिताशेषषण्ढसंघातः । स्थूलतनुः बलवन्तः तिष्ठति सततं निरुद्विग्नः ॥ ३ ॥ सोऽन्यदाऽकस्मात् भद्रत्वं प्राप्तो विधिवशेन । गोवर्ग मुक्त्वा तिष्ठति नगर्यां मध्ये ॥ ४ ॥ दण्डहतोऽपि न रुष्यति विशिष्टसंज्ञया ज्ञातपापफलः । भद्रवृषभेति तदा विख्यातो लोकमध्ये ॥ ५ ॥ तत्रैव च जिनदासस्सुश्रावको वसति ज्ञातजिनवचनः । स कृष्णचतुर्दश्यां शून्यगृहे संस्थितः प्रतिमाम् ॥ ६ ॥

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