Book Title: Manivai Chariyam
Author(s): Jinyashashreeji
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir

View full book text
Previous | Next

Page 120
________________ मणिपति चरित्रे नागदत्तकथा १०१ तो तेण परिच्चत्ता दुग्गा नेऊण रन्नमज्झम्मि। एवं पच्छा तुमए मज्झकयं दव्वहरणेणं ॥ ४॥ मुणिवइसुसाहुचरिए अणुकंपापउमीणीसरसमाणी। बडुयकहा पुण नवमी कुंचियकहिया समासेणं ॥ ५ ॥ नागदत्तकहा अह भणइ मुणिवइमुणी 'सावय ! मा भणसु एरिसं वगणं । मज्झत्थो होऊणं मज्झवि अक्खाणयं सुणसु ॥ १॥ वाणारसीइ जियसत्तुराइणो हिययवल्लहो मित्तं । धणदतो नाम धणी भज्जावि य धणसिरी तस्स ॥ २ ॥ पुत्तो य नागदत्तो अईवजिणवयणभाविओ आसि । जिणगिहगएण तेणं नागवसूकन्नगा दिट्ठा ॥ ३॥ . ततस्तेन परित्यक्ता दुर्गा नीत्वारण्यमध्ये । एवं पश्चात् त्वया मम कृतं द्रव्यहरणेण ॥ ४ ॥ मुनिपतिसुसाधुचरित्रे अनुकम्पापद्मीनिसरस्समाना । बटुककथा पुनः नवमी कुञ्चिककथिता समासेन ॥ ५ ॥ नागदत्त कथा अथ भणति मुनिपतिमुनिः श्रावक ! मा भणेदृशं वचनम् । मध्यस्थः भूत्वा ममाप्याख्यानकं शृणु ॥ १ ॥ वाणारस्यां जितशत्रुराज्ञः हृदयवल्लभो मित्रम् । धनदत्तो नामा धनी भार्यापि च धनश्रीस्तस्य ॥ २ ॥ पुत्रश्च नागदत्तोऽतीवजिनवचणभावित आसीत् । जिनगृहगतेन तेन नागवसुकन्यका दृष्टा ॥ ३ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154