Book Title: Manivai Chariyam
Author(s): Jinyashashreeji
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir
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मणिपति चरित्रे इय छिन्ने ववहारे धणपालो दंडिओ नरिंदेण । धणदत्तो पुइत्ता विसज्जिओ नियघरम्भि गओ ॥ ११ ॥ एयं मुणिवइचरिए निव्वेयसुबीयनीरसेयसमे । मुणिवइमुणिंदकहिया मंतिकहा एत्थ अट्ठमिया ॥ १२ ॥
बडुयकहा 'ता भो ! कुंचियसावय ! मंतिसमाणा उ साहुणो हुंति । नीराग-दोस-मोहा न य अलियं कहवि जंपति' ॥ १ ॥ पुण कुंचिएण भणियं मुणिवइ ! अकयन्नुओ तुह सरिच्छो । नत्थि बटुयं विमोत्तुं तच्चरियं पुण इमं सुणसु ॥ २ ॥ कोइ बडुओ दरिदो दुग्गं गहिउण दारुनिम्मवियं । भिक्खं परिब्भमंतो कालेण महाधणो जाओ ॥ ३ ॥ इति छिने व्यवहारे धनपालो दण्डितो नरेन्द्रेण । धनदत्तः पूजयित्वा विसर्जितो निजगृहं गतः ॥ ११ ॥ . एवं मुनिपतिचरित्रे निर्वेदसुबीजनीरसेकसमे । मुनिपतिमुनिन्द्रकथिता मन्त्रिकथात्राष्टमिका (अष्टमी)॥ १२ ॥
बटुककथा "ततः भो ! कुञ्चिकश्रावक ! मन्त्रिसमानास्तु साधवो भवन्ति । नीरागदोषमोहा न चालिकं कथमपि जल्पन्ति" ॥ १॥ पुनः कुञ्चिकेन भणितं हे मुनिपतेः ! अकृतज्ञात् तव सदृशः । नास्ति बटुकं विमुच्य तच्चरित्रं पुनरिदं श्रृणु ॥ २ ॥ कश्चित् बटुको दरिद्रो दुर्गा (देवी) गृहीत्वा दारु-निर्मापिताम् । भिक्षां परिभ्रमन् कालेन महाधनिको जातः ॥ ३ ॥

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