Book Title: Manivai Chariyam
Author(s): Jinyashashreeji
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir

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Page 116
________________ ९७ मणिपति चरित्रे गृहकोकिलाकथा तस्सा य किर पयईए निसाइ निद्दावसं उवगयस्स। नियमेण दुसियामलकलुसाइं हुंति नयणाई ॥ २२ ॥ संबज्झंति य निच्चं न य पिच्छइ किं पि सो पभायंमि । तो सो दंसणसत्तीरहिओ न य तरइ चंकमिउं ॥ २३ ॥ अह मक्खियाहिं खद्धे नयणमले जायनिम्मलऽच्छिजुओ। ताओ चिय सविशेषं खायइ अकयणुओ पावो ॥ २४ ॥ एवं तुमंपि मुणिवइ ! मज्झ पभावेण जीवियं पत्तो। मह चेव धणे लुद्धो कहं न घरकोइला सरिच्छो ? ॥ २५ ॥ एरिस मुणिवइचरिए संवेगजलोहजलहिसमतुल्लो । घरकोइलादिटुंतो कुंचियकहिओ तु सत्तमओ ॥ २६ ॥ तस्याश्च किल प्रकृत्या निशायां निद्रावशमुपागतयाः । नियमेन दुसितामलकलुषे भवतः नयने ॥ २२ ॥ सम्बज्झन्ति च नित्यं नच प्रेक्षते किमपि सा प्रभाते । ततः सो दर्शनशक्तिरहिता न च शक्नोति चक्रमितुम् ॥ २३ ।। अथ मक्षिकाभिः भुक्ते नयनमले जातनिर्मलाक्षियुक्ता । तस्या एव सविशेष खादत्यकृतज्ञा पापा ॥ २४ ॥ एवं त्वमपि मुनिपते ! मम प्रभावेन जीवितं प्राप्तः । ममैव धने लुब्धः कथं न गृहकोकिला सदृशा ॥ २५ ॥ ईदृशं मुनिपतिचरित्रे संवेगजलौघजलधिसमतुल्यः । गृहकोकिला-द्दष्टान्तः कुञ्चिककथितस्तु सप्तमः ।। २६ ॥ १. नेत्रमल ।

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