Book Title: Manivai Chariyam
Author(s): Jinyashashreeji
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir

View full book text
Previous | Next

Page 63
________________ ४४ मणिपति चरित्रे तीए वि हु पावाए अम्हं भइणीइ संभमवसेणं । उटुंती अंकाओ निवडिओ नउलओ सहसा ॥ १३३ ॥ तं दळूणं अम्हेहिं चिंतियं 'एस जो महाऽणत्थो । अत्थो पुणरवि पत्तो चत्तो सो आसि दहमज्झे ॥ १३४ ॥ तम्हा ते इह धन्ना.कयउन्ना जे इमं परिच्चइउं । पढमं चिय पडिवना पव्वज्जं जिणवरमयंमि' ॥ १३५ ॥ इय भणिऊण अम्हे काउं जणणीइ अग्गिसक्कारं । दाउं भइणीइ धरं पव्वइया गुरुसमीवंमि ॥ १३६ ॥ ता भो पुव्वणुभूयं भयमेयं मज्झ भावयंतस्स । पविसंतस्स निसींहियट्ठाणे भयवयणमावडियं ।। १३७ ॥ तयापि खलु पापया आवयो-भगीन्या संभ्रमवशेन । उतिष्ठन्त्यङ्कातो निपतितो नकुलः सहसा ॥ १३३ ॥ तं दृष्टवा आवाभ्यां चिंतितमेष यो महानर्थः । अर्थः पुनरपि प्राप्तस्त्यक्तः स आसीत् द्रहमध्ये ॥ १३४ ॥ तस्मात् ते इह धन्याः कृतपुन्यास्ते इमं परित्यज्य । प्रथमेव प्रतिपन्नाः प्रव्रज्यां जिनवरमते ॥ १३५ ।। इति भणित्वा आवां कृत्वा जनन्या अग्निसंस्कारम् । दत्त्वा भगीन्यै गृहं प्रवजितौ गुरुसमीपे ॥ १३६ ।। तस्मात् भो ! पूर्वानुभूतं भयमेतं मम भावयतः । प्रविशतः नैषेधिकस्थाने भयवचनमापतितम् ॥ १३७ ॥ इति मणिपति चरित्रे प्रबन्धेनेव कथितं शिवमुनिकथानकं समाप्तम् ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154